जानिए : ओमीक्रोन वेरिएंट पर कितनी प्रभावी है पुरानी वैक्सीन
क्या बनानी पड़ेगी अब नई वैक्सीन या पुरानी वैक्सीन की जाएगी उन्नत
कोवोड 19 के नए वैरिएंट ओमिक्रोन को लेकर जनता के मन में कई प्रश्न हैं जिनके उत्तर डॉक्टर और वैज्ञानिक ढूंढ रहे हैं।
इस में से एक प्रश्न है नए वैरिएंट के खिलाफ अभी उपलब्ध कोरोनारोधी वैक्सीन की क्षमता को लेकर। ओमिक्रोन वैरिएंट आने के बाद वैक्सीन में क्या और कैसे बदलाव संभावित हैं।
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि क्या वायरस के नए स्वरूप में इतना बदलाव हो गया है कि अभी उपलब्ध वैक्सीन के द्वारा उत्पन्न एंडीबाडी उसे पहचानकर रोकने में सक्षम नहीं रह गई हैं।
दरअसल कोरोना वायरस स्पाइक प्रोटीन के जरिये मानव शरीर में कोशिकाओं की सतह पर एसीई-2 रिसेप्टर्स के संपर्क में आकर उन्हें संक्रमित करता है। एमआरएनए आधारित कोरोनारोधी वैक्सीन से शरीर में एंटीबाडी का निर्माण होता है।
यह एंटीबाडी कोरोना संक्रमित व्यक्ति में वायरस के स्पाइक प्रोटीन बनाकर कोशिकाओं को प्रभावित करने की उसकी क्षमता कम कर देती हैं। वहीं, ओमिक्रोन वैरिएंट के स्पाइक प्रोटीन में म्यूटेशन के तरीके में बदलाव देखा गया है।
यह बदलाव शरीर में वैक्सीन द्वारा बनाई गई कुछ एंटीबाडी (सभी नहीं) के स्पाइक प्रोटीन से जु़ड़कर उसे कमजोर करने की क्षमता कम कर सकता है। यदि ऐसा होता है तो ओमिक्रोन के खिलाफ अभी उपलब्ध वैक्सीन की क्षमता कम हो सकती है।
पुरानी वैक्सीन से कैसे अलग हो सकती है वैक्सीन
आज तक उपलब्ध एमआरएनए वैक्सीन कोरोना वायरस के मूल स्ट्रेन के स्पाइक प्रोटीन पर आधारित हैं। नई या उन्नत वैक्सीन को ओमिक्रोन के स्पाइक प्रोटीन पर आधारित करके बनाया जा सका है।
वायरस के मूल स्पाइक प्रोटीन को नए वैरिएंट के स्पाइक प्रोटीन से बदलने पर नई या उन्नत वैक्सीन ओमिक्रोन के खिलाफ मजबूत एंटीबाडी बनाकर इसका प्रसार रोकने में सफल हो सकती है।
वैक्सीन ले चुके या कोरोना से संक्रमित हो चुके लोग संभवत: नई वैक्सीन की एक बूस्टर डोज लेकर नए वैरिएंट व वातावरण में मौजूद अन्य वैरिएंट से खुद को सुरक्षित कर सकेंगे।
अगर डेल्टा स्ट्रेन के मुकाबले ओमिक्रोन स्ट्रेन अधिक प्रबल हुआ तो अभी तक वैक्सीन न लेने वाले लोगों को दो-तीन डोज की आवश्यकता हो सकती है।
यदि ओमिक्रोन और डेल्टा दोनों ही वैरिएंट मौजूद हैं तो लोगों को वर्तमान और उन्नत वैक्सीन के मिश्रण वाली डोज की जरूरत पड़ सकती है। अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं है कि उन्नत वैक्सीन के लिए सक्षम संस्था की स्वीकृति पाने को कितने क्लीनिकल डाटा की जरूरत होगी।
हालांकि उन्नत वैक्सीन में जेनेटिक कोड में कुछ बदलाव को छोड़कर बाकी सभी तत्व पुराने ही होंगे। सुरक्षा के लिहाज से उन्नत वैक्सीन पहले से ही टेस्ट की जा चुकी वैक्सीन से मिलती जुलती ही होगी। इस कारण पहली बार कोरोना रोधी वैक्सीन बनाने की तुलना में अब कम क्लीनिकल ट्रायल की जरूरत होगी।
क्लीनिकल ट्रायल से अब केवल यह पता लगाने की आवश्यकता होगी कि क्या उन्नत वैक्सीन सुरक्षित होने के साथ मूल, बीटा व डेल्टा स्ट्रेन के केस की तरह ही एंटीबाडी बना रही है। यदि ऐसा है तो विज्ञानी कुछ सैकड़ा लोगों पर ही क्लीनिकल ट्रायल कर लेंगे।
किसी वैक्सीन को उन्नत करने में कितना समय लगता है
नए एमआरएनए के निर्माण के लिए डीएनए टेम्पलेट बनाने में तीन दिन लगते हैं। एमआरएनए की पर्याप्त डोज बनाने में एक सप्ताह का समय लगता है।
टेस्ट ट्यूब में मानव कोशिकाओं पर परीक्षण करने में छह सप्ताह लगते हैं। यानी 52 दिनों में उन्नत एमआरएनए वाली वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल के लिए बनती है।
क्लीनिकल ट्रायल के कुछ सप्ताह मिलाकर करीब सौ दिन में उन्नत वैक्सीन मानव ट्रायल के लिए तैयार होती है।
ट्रायल के दौरान निर्माता उन्नत वैक्सीन के लिए अपनी वर्तमान निर्माण प्रक्रिया में बदलाव कर सकते हैं। ट्रायल पूर्ण होने और वैक्सीन को प्राधिकारियों की स्वीकृति मिलते ही कंपनी नई वैक्सीन की डोज बना सकती है।