तीन अर्थियां, एक शोक – न्यूगल नदी ने छीन लिए घर के चिराग
मैले गांव की फिजाओं में सोमवार को एक ऐसा सन्नाटा पसरा था, जिसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है। न्यूगल नदी में रविवार को हुए हादसे ने एक ही परिवार से तीन जिंदगियां छीन लीं – एक दादा और उसके दो मासूम पोते। सोमवार को गांव के श्मशान घाट पर जब एक साथ तीन चिताएं जलीं, तो हर आंख नम थी, हर दिल भरा हुआ।
दोपहर साढ़े तीन बजे जैसे ही शव पोस्टमार्टम के बाद ओमप्रकाश के घर पहुंचे, वहां चीखों और करुण क्रंदन का जो मंजर था, वह पत्थर को भी पिघला दे। दादा की अर्थी पहले उठी, फिर उनके नन्हें पोतों की – जिन्हें गोद में उठाकर श्मशान लाया गया। यह दृश्य जिसने भी देखा, वो शायद कभी न भूल पाए।
दादी बीना देवी का गम शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता – उनका कहना है, “अब जीने का क्या मतलब रह गया जब पूरा घर ही उजड़ गया।” बच्चों की मां बिनता देवी और चाची पूजा बेसुध हैं। पूजा, जिनकी अपनी कोई संतान नहीं है, बच्चों को अपनी जान से भी ज्यादा चाहती थीं। बीते 24 घंटे से उन्होंने कुछ खाया तक नहीं।
ओमप्रकाश, जो घर पर खेती-बाड़ी करते थे, अपने पोतों के साथ रविवार को नदी में नहाने गए थे – और फिर कभी वापस नहीं लौटे। उनका बेटा नवीन पंचायत वार्ड सदस्य है और पोल्ट्री फार्म चलाता है, जबकि सवीन डीजे का काम करता है। सवीन कहते हैं, “हमारी रोजी-रोटी पहले ही मुश्किल से चल रही थी, अब तो सब कुछ खत्म हो गया।”
हीरो सूबेदार केहर सिंह की बहादुरी
जब सब कुछ अंधकारमय लग रहा था, तभी एक उम्मीद की किरण बने 72 वर्षीय पूर्व फौजी सूबेदार केहर सिंह। उन्होंने 40 फुट गहरे पानी में उतरकर बच्चों के शवों को बाहर निकाला। उनका कहना था कि एक बच्चा तो दूर से ऐसा लग रहा था जैसे कोई गुड्डा पानी में तैर रहा हो। बच्चों को निकालने के बाद वह खुद 5 मिनट तक बेहोश पड़े रहे।
केहर सिंह ने 26 साल फौज में सेवा दी और 2000 में रिटायर हुए। तैराकी उनका शौक था और फर्ज भी। वह बताते हैं, “आज के युवा तैरना नहीं जानते, जबकि यह एक जीवन रक्षक कला है। इसे सीखना चाहिए – सही मार्गदर्शन के साथ।”
प्रशासन का सहयोग
एसडीएम धीरा सलीम आजम ने बताया कि प्रशासन की ओर से मृतकों के परिजनों को 4 लाख रुपये प्रति व्यक्ति सहायता राशि दी जाएगी। 25 हजार रुपये की फौरी राहत पहले ही दी जा चुकी है, बाकी औपचारिकताओं के बाद शेष राशि भी दी जाएगी।
अंतिम विचार
इस दर्दनाक हादसे ने पूरे इलाके को झकझोर दिया है। यह केवल एक परिवार का दुख नहीं, बल्कि पूरे समाज की एक करुण कहानी बन गई है। न्यूगल की लहरें अब भी बह रही हैं, मगर उस पानी में अब तीन अनकही कहानियां सदा के लिए समा चुकी हैं।