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पांवटा साहिब : बंदरों के आतंक से जीना हुआ मुहाल, घर और बाहर कहीं सुरक्षित नहीं है बच्चे

पांवटा साहिब : बंदरों के आतंक से जीना हुआ मुहाल, घर और बाहर कहीं सुरक्षित नहीं है बच्चे

पांवटा साहिब : बंदरों के आतंक से जीना हुआ मुहाल, घर और बाहर कहीं सुरक्षित नहीं है बच्चे

प्रीती पारछे

हिमाचल प्रदेश जिला सिरमौर के रिहायशी इलाकों में बंदरों का आतंक चौथे आसमान पर है बाहर तो बाहर लोग अपने घरों तक में सुरक्षित नहीं है जरा सी नजर हटी नहीं कि बंदर घरों तक घुस जाते हैं।

बंदरों के आतंक से परेशान लीलावती निवासी गुलाबगढ़ टोका ने बताया कि उनके इलाके में बंदरों का इतना आतंक है कि बंदर बच्चों को देखते ही उन पर हावी होने लगते हैं।

अक्सर स्कूल से आते-जाते बच्चों को छीना झपटी करते हैं इतना ही नहीं वे बंदर इस कदर जिद्दी है, कि जब तक उन्हें कुछ खाने पीने की चीज नहीं दे दी जाती तब तक वह उनका पीछा नहीं छोड़ते हैं। कभी-कभी तो इनका आतंक इतना बढ़ जाता है कि है घर के अंदर घुस रसोईघर फ्रिज इत्यादि तक भी पहुंच जाते हैं।

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उन्होंने प्रशासन से अपील की है कि उनके बच्चे घर स्कूल कहीं भी सुरक्षित नहीं है इसलिए बंदरों से बचाव के लिए बंदरों को पकड़कर कहीं ऐसी जगह छोड़ा जाए जहां पर बच्चों बड़ों किसी को भी जान का नुकसान ना हो।

बंदरों ने पिछले 10 महीनों में 130 को बनाया अपना शिकार….

सिविल अस्पताल पांवटा साहिब के एसएमओ डॉक्टर अमिताभ जैन के अनुसार इस वर्ष जनवरी माह में 2, फरवरी में 5, मार्च में 13, अप्रैल माह में 15, मई में 9 जून में 15, जुलाई में 25, अगस्त में 20, सितंबर में 15, अक्टूबर में 11, बंदरों के काटने के मामले आएं है।

कुल मिलाकर औसतन बात की जाए तो 2022 में कुल मिलाकर ओपीडी और कैजुअल्टी के कुल 130 मामले सामने आए हैं।

बात दें कि पांवटा साहिब में बंदर पकड़ने के लिए विशेष टीम ऊना से बुलाई गई थी। इस टीम ने पांवटा साहिब की विभिन्न कॉलोनियों में जाकर बंदरों को पकड़ने की मुहिम भी चलाई।

विशेष टीम द्वारा बंदरों को पकड़कर नसबंदी करने के लिए पांवटा स्थित मंकी स्टरलाइजेशन सेंटर में भेजा गया, जहां नसबंदी करने पश्चात बंदरों को जंगल में छोड़ा गया है।

क्या कहती हैं कृषि विकास अधिकारी

 इस बारे में बातचीत करते हुए कृषि विकास अधिकारी रश्मि भटनागर ने बताया कि पांवटा साहिब में जंगली जानवर फसलों के लिए एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आए है। अकसर इन जानवरों की वजह से किसानों की फसलों को भारी नुकसान होता है जिसकी वजह से किसान हताश हो जाते हैं।

पांवटा साहिब में ना केवल हाथियों हिरण, नीलगाय बल्कि बंदर भी किसानों के लिए आफत बने हुए हैं। किसान अक्सर अपनी आपबीती कृषि अधिकारियों को सुनाते रहे हैं।

क्या कहते हैं डीएफओ कुनाल अंग्रिश 

डीएफओ कुणाल अंग्रिश ने बताया की इस प्रकार के वन्य जानवर जो कि आम जनता के लिए परेशानी का सबब बनते हैं उन्हें वन विभाग द्वारा वर्मिन करने का प्रावधान चलाया गया है।

वर्मीन करने से अभिप्राय यह है कि यदि आम जनता जनार्दन इन जंगली जानवरों को पकड़ने में वन विभाग की मदद करते हैं या उन्हें खुद से पकड़ कर जंगलों इत्यादि में भेजते हैं तो इनके खिलाफ कोई कार्यवाही वन विभाग द्वारा नहीं की जाएगी।

हालांकि यह प्लान बहुत अधिक स्तर पर कामयाब नहीं रहा इसके कुछ कारण हो सकते हैं। जिसके बाद वन विभाग में एक मुहिम जारी की जिसके अंतर्गत बंदरों को पकड़कर स्टरलाइजेशन सेंटर ले जाकर उन्हें नसबंदी कर जंगलों में वापस छोड़ा जाता है ताकि बंदरों की तादात में कमी आ सके।

उन्होंने यह भी बताया कि पिछले 3 साल में उन्होंने लगभग 3000 से अधिक बंदरों को पकड़कर नसबंदी कर उन्हें वापस जंगलों में छोड़ा है। जिसके बाद बंदरों की तादात में काफी बड़े स्तर पर कमी देखने को मिली है। हालांकि इनकी संख्या इतनी अधिक होने के कारण अभी और मंकी कैचिंग की मुहिम जारी है।

मंकी कैचिंग अभियान के दौरान पांवटा अनाजमंडी क्षेत्र, गुलाबगढ़ व शहर में बंदर पकड़े गए हैं।

बात यदि इस वर्ष की की जाए तो इस वर्ष भी वन विभाग द्वारा काफी मात्रा में रिहायशी इलाकों से बंदरों को पकड़कर उन्हें मंकी स्टेरलाइजेशन सेंटर में ले जाकर नसबंदी कर वापस जंगलों में छोड़ा गया है ।

लगभग 450 के करीब बंदर इस वर्ष पांवटा साहिब के रिहायशी इलाकों से पकड़े गए हैं। और इससे अधिक बंदरों को पकड़ उन्हें जंगलों में भेजने के बारे में उच्च अधिकारियों को पत्र भेजा गया है।

इतना ही नहीं उन्होंने बताया कि इस मामले में उन्होंने प्रशासन एवं नगर परिषद से इस बारे में बातचीत रखी है और कहा है कि जो एमसी एक्ट 1994 है उसके मुताबिक स्ट्रे एनिमल्स के लिए कुछ दिशा निर्देश बने हैं।

उन निर्देशों को फॉलो करते हुए प्रशासन एवं नगर परिषद के साथ मिलकर मंकी कैचिंग टीम द्वारा जो भी प्रावधान है उसके मुताबिक काम किया जा रहा है ताकि जो है रिहायशी इलाकों में से बंदरों की तादात को कम किया जा सके।

डीएफओ कुणाल अंग्रेज ने जानकारी देते हुए कहा कि वन विभाग द्वारा एक प्रावधान उन लोगों के लिए भी है जिन लोगों को बंदरों द्वारा काट लिया जाता है उन्हें वन विभाग मुआवजा प्रदान करता है, जिसके लिए पीड़ित व्यक्ति को अपने मेडिकल स्लिप के साथ वन विभाग को सबूत पेश करने होते हैं जिसके आधार पर उन्हें वन विभाग द्वारा मुआवजा दिया जाता है।

डीएफओ कुणाल ने आम जनता जनार्दन से अपील करते हुए कहा कि रिहायशी एवं अन्य सार्वजनिक स्थानों पर खाने पीने की चीज है या कूड़ा करकट खुले रुप से ना फेंके तभी पूर्ण रूप से बंदरों की संख्या जनसंख्या पर पूर्णता विराम लगाया जा सकता है।

लोगों द्वारा खुले में खाना-पीना फेंकने से बंदरों की जनसंख्या वृद्धि होना स्वभाविक है ऐसे में अभी से अपील है कि खुले में खाना-पीना या कूड़ा करकट ना फैलाएं तथा अपने अमूल्य जीवन को संकट में ना डालें।

क्या कहते हैं नगर परिषद कार्यकारी अधिकारी

नगर परिषद के ईओ अजमेर सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि पांवटा साहिब में बंदरों की समस्या रिहायशी इलाकों में एक गंभीर समस्या के रूप में सामने आ रही है। लोगों का घरों से निकलना मुश्किल हो गया है बच्चे अकेले बाजार स्कूल या घर के बाहर तक खेलने नहीं जा सकते हैं क्योंकि बंदर मौका पाते ही इंसानों पर हमला कर देते हैं।

उन्होंने बताया कि आचार संहिता के खत्म होते ही नगर परिषद की पहली बैठक में इस बारे में विचार विमर्श किया जाएगा। जिसके बारे एसडीएम विवेक महाजन के निर्देशों के अनुसार नगर परिषद को बंदरों को पकड़ने के लिए निर्देश जारी किए गए हैं।

इस बैठक के दौरान इस मामले में जो भी फैसला रहेगा उसके मुताबिक काम किया जाएगा और बंदरों को जल्द से जल्द पकड़ जंगलों में छोड़ा जाएगा।

Written by Newsghat Desk

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