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पेरेंट्स जरा संभल कर! बच्‍चों के सामने माता-पिता की लड़ाई बनती है मासूम ज़िंदगी पर गहरे ज़ख्म की वजह

पेरेंट्स जरा संभल कर! बच्‍चों के सामने माता-पिता की लड़ाई बनती है मासूम ज़िंदगी पर गहरे ज़ख्म की वजह

पेरेंट्स जरा संभल कर! बच्‍चों के सामने माता-पिता की लड़ाई बनती है मासूम ज़िंदगी पर गहरे ज़ख्म की वजह
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पेरेंट्स जरा संभल कर! बच्‍चों के सामने माता-पिता की लड़ाई बनती है मासूम ज़िंदगी पर गहरे ज़ख्म की वजह

हर रिश्ते में मतभेद और तकरार होना स्वाभाविक है। लेकिन जब आप माता-पिता बन जाते हैं, तो आपकी लड़ाई सिर्फ आपके बीच नहीं रह जाती — उसका असर आपके बच्चे के कोमल मन और भविष्य पर पड़ता है। कई बार हम भूल जाते हैं कि हमारी चीख-पुकार, कड़वे शब्द और गुस्से भरी बहसें हमारे बच्चों की मानसिक स्थिति को कितना नुकसान पहुँचा सकती हैं।

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क्यों खतरनाक है बच्चों के सामने झगड़ना?

बच्चे अपने माता-पिता को एक सुरक्षित स्थान की तरह देखते हैं। जब वही दो लोग आपस में तकरार करते नजर आते हैं, तो बच्चे असमंजस में पड़ जाते हैं। उन्हें समझ नहीं आता कि किसका साथ दें या कैसे इस माहौल से निपटें। लगातार तनावपूर्ण माहौल में रहना, उन्हें एंग्जायटी, डिप्रेशन और आत्मविश्वास की कमी की ओर ले जा सकता है।

शोध क्या कहते हैं?

यूनिवर्सिटी ऑफ ओरेगन की एक स्टडी के अनुसार, यहां तक कि 6 महीने का शिशु भी माता-पिता की बहस को महसूस कर सकता है। बच्चों का मानसिक विकास इस बात से प्रभावित होता है कि उनके माता-पिता एक-दूसरे से कैसे बात करते हैं। यह असर सिर्फ छोटे बच्चों तक सीमित नहीं रहता — किशोर अवस्था तक इसका असर महसूस किया जा सकता है।

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क्या हो सकते हैं दुष्परिणाम?

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इमोशनल डैमेज: अगर लड़ाई में अपशब्द, बेइज्जती या मारपीट शामिल हो, तो बच्चा आंतरिक रूप से टूट सकता है।

असुरक्षा की भावना: बच्चे खुद को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं।

भविष्य के रिश्तों में परेशानी: ऐसे बच्चे जब बड़े होते हैं, तो उन्हें अपने संबंधों में भी तनाव, अविश्वास और डर का सामना करना पड़ सकता है।

पेरेंट-चाइल्ड बॉन्डिंग कमजोर पड़ती है: लगातार लड़ाई-झगड़ों में उलझे माता-पिता अक्सर अपने बच्चे की भावनाओं और ज़रूरतों की अनदेखी करने लगते हैं।

माता-पिता क्या करें?

1. झगड़ा निजी रखें: कोशिश करें कि बहस बच्चे के सामने न हो। मुद्दों पर बात करें, लेकिन एकांत में।

2. गंभीरता से लें बच्चे की भावनाएं: बच्चे को यह न महसूस होने दें कि वह इस तनाव का हिस्सा है।

3. शांत तरीके से संवाद करें: चिल्लाने से समाधान नहीं निकलता, बल्कि नुकसान ही होता है। धीमे स्वर और संयम से बात करें।

4. सुनने की आदत डालें: दोनों को बोलने का मौका दें, यह बच्चे के लिए एक सकारात्मक उदाहरण बन सकता है।

5. बच्चे को समझाएं: जब झगड़ा हो भी जाए, तो बाद में बच्चे को प्यार से बताएं कि मम्मी-पापा ने बहस की, लेकिन सब ठीक है।

 

इस आर्टिकल से यह साबित होता है कि पेरेंट्स होना केवल बच्चों को पालना नहीं, बल्कि उन्हें मानसिक रूप से सुरक्षित और मजबूत बनाना भी है। लड़ाई-झगड़ा हो सकता है, लेकिन उसे कैसे संभाला जाए, ये तय करता है कि आपका बच्चा एक स्वस्थ मानसिकता के साथ बड़ा होगा या घुटते हुए। आपकी जिम्मेदारी है कि उसे ऐसा माहौल दें, जहां वह खुलकर हंस सके, सीख सके और प्रेम को समझ सके।

Written by Newsghat Desk

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