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सावधान : क्या करें जब बीमा कंपनी हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम देने से करे इंकार ?

सावधान : क्या करें जब बीमा कंपनी हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम देने से करे इंकार ?
सावधान, क्या करें जब बीमा कंपनी हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम देने से करे इंकार ?

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सावधान : क्या करें जब बीमा कंपनी हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम देने से करे इंकार ?

जान लीजिए क्या है आपके कानूनी अधिकार…

आज के समय में हेल्थ इंश्योरेंस एक मूल आवश्यकता बन गया है, क्योंकि वर्तमान में अस्पताल में खर्च होने वाला राशि इतनी अधिक हो गया है कि किसी भी व्यक्ति के समस्त जीवन की जमा पूंजी हो सकता है, और आज के समय मे महामारी का दौर चल रहा है, एवं लोगों का बीमार खोना एक सामान्य से बात हो गया है, इस स्थिति में अधिकांश लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर हेल्थ इंश्योरेंस करवाता है, तथा आज वर्तमान में बाजार में अनेक हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां है जो इससे संबंधित काम करता है।
कब होता है बीमा क्लेम खारिज

आपको बता दे कि बीमा खरीद तो लिया जाता है पर कुछ ऐसी स्थितियां होता हैं जिन्हें बीमा कंपनी बीमा देने से इंकार कर देता है, तथा अस्पताल को किसी भी प्रकार का कोई भुगतान नहीं करता है, और ऐसी बीमा कंपनी सरकार के अधीन कार्य करता है एवं सरकार के सभी नियम उन पर लागू होता हैं और इसके बाद भी बीमा कंपनी कुछ शर्तो के उल्लंघन के आधार पर बीमा क्लेम को निरस्त कर देता है, और जैसे कि कोई व्यक्ति किसी कंपनी से एक बीमा खरीदता है।

बीमा क्लेम खारिज होने पर की जाने वाली कार्रवाही
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आज के समय में ऐसा बीमा क्लेम खारिज होने के बाद ग्राहक के पास कुछ अधिकार होता हैं जिनका प्रयोग करके वह अपने को होने वाली नुकसान की भरपाई करवा सकता है।

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वर्तमान में ऐसे किसी भी बीमा क्लेम के खारिज होने पर उससे संबंधित मामला उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए कंज़्यूमर फोरम में लगाया जाता है। यहां आपको यह ध्यान देना चाहिए कि इससे संबंधित मामला भारत की किसी भी और दूसरी कोर्ट में नहीं लगाया जाता है इसकी सुनवाई सिर्फ कंज़्यूमर फोरम ही करता है।

आपको बता दे कि कंज़्यूमर फोरम में ऐसा लिखित आवेदन उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 35 के अंतर्गत प्रस्तुत किया जाता है। और यहां पर मुकदमा एक सिविल मुकदमे के समान चलता है पर इसकी प्रक्रिया अत्यंत संक्षिप्त रहता है एवं शीघ्र से शीघ्र इस मामले को निपटा दिया जाता है।

ये भी जान लें कि कंज़्यूमर फोरम में ऐसा मुकदमा लगाए जाने के 1 वर्ष के भीतर सामान्यतः यह प्रकरण निपटा दिया जाता हैं। और यहां सबसे पहले बीमा कंपनी के मुख्य दफ्तर एवं क्षेत्रीय दफ्तर को नोटिस किया जाता है तथा उन्हें कंजूमर फोरम के समक्ष उपस्थित होकर अपना जवाब प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है।

ये भी गौरतलब है कि बीमा की यह शर्त कॉन्ट्रैक्ट की शर्त के समान रहता है और बीमा कंपनी अधिकांश मामलों में अपनी इन शर्तों का ही लाभ उठाता है, क्योकि अधिकांशतः ग्राहक को इन शर्त्तों की जानकारी नही होता है, और बीमा कंपनी के एजेंट कुछ और शर्त बताकर बीमा बेच देता हैं जबकि एजेंट द्वारा कही गई बात किसी भी रिकॉर्ड पर उपलब्ध नहीं होता है।

Written by newsghat

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