हिमाचल में दिखी 70 साल बाद विलुप्त मानी जाने वाली उड़ने वाली गिलहरी! मियार घाटी में कैमरे में कैद हुआ दुर्लभ प्रजाति का पहला सबूत…
हिमाचल प्रदेश में एक हैरान करने वाली खोज हुई है। लाहौल-स्पीति की मियार घाटी में उड़ने वाली ऊनी गिलहरी दिखाई दी है। यह प्रजाति 7 दशकों से विलुप्त मानी जा रही थी। वन्यजीव प्रभाग के सर्वे में यह खुलासा हुआ।
वन विभाग ने पिछले साल अक्टूबर-दिसंबर में कैमरा ट्रैप लगाए थे। अब इनका अध्ययन हो रहा है। कैमरे में इस दुर्लभ गिलहरी की तस्वीर पहली बार कैद हुई। 1994 में इसकी दोबारा खोज हुई थी।
यह सर्वे हिम तेंदुए की गिनती के लिए शुरू हुआ था। भारत सरकार के स्नो लैपर्ड प्रोटोकॉल के तहत 62 कैमरे लगे। नेचुरल कंजर्वेशन फाउंडेशन ने इसमें मदद की। स्थानीय युवाओं ने भी योगदान दिया।
कैमरों ने गिलहरी के साथ हिम तेंदुआ, लाल लोमड़ी और भेड़िया भी रिकॉर्ड किया। ये जानवर चट्टानी ढलानों पर रहते हैं। यह गिलहरी का पसंदीदा इलाका है। यह खोज हिमाचल की जैव विविधता को बढ़ाती है।
पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ अमिताभ गौतम ने इसे बड़ी उपलब्धि बताया। उन्होंने कहा कि यह गिलहरी पहली बार हिमाचल में देखी गई। यह ऊंचाई से ग्लाइड करती है। पंख नहीं होते, फिर भी उड़ान भरती है।
यह प्रजाति उत्तर-पश्चिम हिमालय में दुर्लभ है। पहले इसे पाकिस्तान और कुछ राज्यों में देखा गया था। मियार घाटी की यह खोज हिमालय के पारिस्थितिकी तंत्र की खासियत दिखाती है।
सर्वे में किब्बर गांव के युवाओं ने मेहनत की। लाहौल के एक संरक्षण कार्यकर्ता भी शामिल रहे। इनके प्रयासों से यह सफलता मिली। वन्यजीव संरक्षण के लिए यह प्रेरणा है।
यह खोज भविष्य में संरक्षण के लिए रास्ता बनाएगी। हिमाचल की प्राकृतिक संपदा को बचाने की जरूरत पर जोर देती है। वैज्ञानिक अब इस पर और शोध करेंगे।
मियार घाटी अब वन्यजीव प्रेमियों के लिए चर्चा का केंद्र बन गई है। यह खबर हिमालयी क्षेत्र की अनोखी जैविक धरोहर को उजागर करती है। संरक्षण के प्रयासों को बल मिलेगा।