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Himachal Latest News: यूनेस्को के विश्व बायोस्फीयर रिजर्व नेटवर्क का हिस्सा बनी स्पीति घाटी

Himachal Latest News: यूनेस्को के विश्व बायोस्फीयर रिजर्व नेटवर्क का हिस्सा बनी स्पीति घाटी

Himachal Latest News: यूनेस्को के विश्व बायोस्फीयर रिजर्व नेटवर्क का हिस्सा बनी स्पीति घाटी
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Himachal Latest News: यूनेस्को के विश्व बायोस्फीयर रिजर्व नेटवर्क का हिस्सा बनी स्पीति घाटी

Himachal Latest News: लाहौल-स्पीति जिले की स्पीति घाटी को यूनेस्को के प्रतिष्ठित मानव और बायोस्फीयर (एमएबी) कार्यक्रम के तहत देश के पहले शीत मरुस्थल बायोस्फीयर रिजर्व के रूप में मान्यता दी गई है। यह मान्यता औपचारिक रूप से 26 से 28 सितंबर, 2025 तक चीन के हांगझोउ में आयोजित 37वीं अंतरराष्ट्रीय समन्वय परिषद (एमएबी-आईसीसी) की बैठक के दौरान प्रदान की गई।

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Himachal Latest News: यूनेस्को के विश्व बायोस्फीयर रिजर्व नेटवर्क का हिस्सा बनी स्पीति घाटी

इस समावेशन के साथ, भारत के अब एमएबी नेटवर्क में कुल 13 बायोस्फीयर रिजर्व हो गए हैं। मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू के नेतृत्व में राज्य सरकार के दक्ष व व्यावहारिक प्रयासों से यह उपलब्धि हासिल हुई है। उन्होंने इस क्षेत्र की अनूठी पारिस्थितिकी, जलवायु, संस्कृति और विरासत के साथ-साथ उन स्थानीय समुदायों के प्रति प्रतिबद्धता पर निरंतर बल दिया है, जो पीढ़ियों से प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर रह रहे हैं।

वन विभाग और वन्यजीव विंग को बधाई देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, ‘राज्य सरकार विकासात्मक गतिविधियों और प्रकृति के बीच सामंजस्य सुनिश्चित करते हुए, जलवायु परिवर्तन के युग में हिमाचल प्रदेश की समृद्ध प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत और नाजुक पारिस्थितिकी के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। स्पीति कोल्ड डेजर्ट बायोस्फीयर रिजर्व 7,770 वर्ग किलोमीटर के भौगोलिक क्षेत्र में फैला है, जिसमें संपूर्ण स्पीति वन्यजीव प्रभाग 7,591 वर्ग किलोमीटर और लाहौल वन प्रभाग के आसपास के हिस्से शामिल हैं, जिनमें बारालाचा दर्रा, भरतपुर और सरचू (179 वर्ग किलोमीटर) शामिल हैं।

3,300 से 6,600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह क्षेत्र, भारतीय हिमालय के ट्रांस-हिमालय जैव-भौगोलिक प्रोविंस के अंतर्गत आता है। रिजर्व को तीन क्षेत्रों में संरचित किया गया है, 2,665 वर्ग किलोमीटर कोर ज़ोन, 3,977 वर्ग किलोमीटर बफर ज़ोन और 1,128 वर्ग किलोमीटर ट्रांजिशन जोन। यह पिन वैली राष्ट्रीय उद्यान, किब्बर वन्यजीव अभयारण्य, चंद्रताल आर्द्रभूमि और सरचू मैदानों को एकीकृत करता है।

यह विषम जलवायु, स्थलाकृति और नाज़ुक मिट्टी द्वारा निर्मित एक अद्वितीय शीत रेगिस्तानी पारिस्थितिकी तंत्र को दर्शाता है। यह क्षेत्र पारिस्थितिक रूप से समृद्ध है, जिसमें 655 जड़ी-बूटियांे, 41 झाड़ियांे और 17 वृक्षों की प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें 14 स्थानिक और 47 औषधीय पौधे शामिल हैं। यह सोवारिग्पा/आमची चिकित्सा परंपरा के लिए उपयोग में लाए जाते हैं। यहां के वन्यजीवों में 17 स्तनपायी प्रजातियां और 119 पक्षी प्रजातियां शामिल हैं, जिनमें हिम तेंदुआ एक प्रमुख प्रजाति है।

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अन्य उल्लेखनीय प्रजातियों में तिब्बती भेड़िया, लाल लोमड़ी, आइबेक्स, और नीली भेड़, हिमालयन स्नोकॉक, गोल्डन ईगल, बेयर्ड गिद्ध शामिल हैं। यह 800 से अधिक नीली भेड़ों का आश्रय स्थल है। प्रधान मुख्य अरण्यपाल (वन्यजीव) अमिताभ गौतम ने कहा मान्यता प्राप्त होने के पश्चात हिमाचल के ठंडे रेगिस्तान वैश्विक संरक्षण मानचित्र पर मजबूती से उभरेंगे। इससे अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान सहयोग बढ़ेगा, स्थानीय आजीविका को और सुदृढ़ करने के लिए ज़िम्मेदार इको-टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा और नाज़ुक हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र में जलवायु परिवर्तन के प्रति भारत के सकारात्मक प्रयासों को बल मिलेगा।

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Written by News Ghat

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