

Devvrat Mahesh Rekhe: कौन है देवव्रत महेश रेखे! जिनकी वेद साधना पर मंत्रमुग्ध हुए PM मोदी और CM योगी
Devvrat Mahesh Rekhe: आज जब हमारी युवा पीढ़ी आधुनिक शिक्षा और व्यावसायिक लक्ष में उलझी हुई है। इस बीच 19 वर्ष के एक युवक देवव्रत महेश रेखे ने ऐसा कार्य कर दिखाया है, जिसने एक बार फिर से भारत में शास्त्रों परंपराओं को पुनर्जीवित कर दिया है। जी हां, इस युवा ने 12 अक्टूबर 2025 से लेकर 29 नवंबर 2025 के बीच 50 दिनों तक बिना किसी छुट्टी के दंडक्रम पारायण पूरा किया।

Devvrat Mahesh Rekhe: कौन है देवव्रत महेश रेखे! जिनकी वेद साधना पर मंत्रमुग्ध हुए PM मोदी और CM योगी
यहां उन्होंने 2000 मन्त्रो वाली दंडक्रम पारायण को केवल अपनी याददाश्त के दम पर कंठस्थ कर लय, स्वर और शुद्ध उच्चारण के साथ प्रस्तुत किया। उनके इस प्रयास की वजह से उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा प्राप्त की है और PM मोदी CM योगी भी उनकी तारीफ करते नहीं थक रहे। बता दे देवव्रत महेश 19 वर्ष के युवा वैदिक साधक हैं। वह महाराष्ट्र की अहिल्यानगर से आते हैं।
उनके पिता महेश चंद्रकांत रेखे स्वयं शुक्ल यजुर्वेद के माध्यन्दिनी शाखा के विद्वान हैं। उन्होंने बचपन से ही देवव्रत को गुरु परंपरा के अनुसार वेदों का अध्ययन और उच्चारण सिखाया है। देवव्रत ने 14 से 17 वर्ष की आयु में ही वेदों की पढ़ाई कर ली और कठिन से कठिन संस्कृत मंत्र पाठ स्वर लय और स्मृति की टेक्निक सीख ली। और इसी का नतीजा है कि उन्होंने आज 2025 में एक विलक्षण लगभग लुप्त वेद पारायण परंपरा का हिस्सा बनकर इतिहास रच दिया है।

क्या है वेदमूर्ति देवव्रत रेखे की यह उपलब्धि?
देवव्रत महेश रेखे ने 50 दिनों तक लगातार 2000 मन्त्रो वाली दंडक्रम पारायण को पूर्ण स्मृति, बिना ग्रंथ देखें पूरी शुद्धता के साथ कंठस्थ कर प्रस्तुत किया। उनका यह प्रयास 200 साल बाद किसी विद्वान द्वारा दोहराया गया है। इसीलिए इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि माना जा रहा है। दंडक्रम पारायण शुक्ल यजुर्वेद की एक अत्यंत जटिल दुर्लभ और उच्च कोटि वेद साधना है। इसमें 2000 मन्त्रो का पाठ होता है जिसे याद करना आसान नहीं।
देवव्रत ने यही असंभव कार्य किया है। जहां उन्होंने बिना किसी किताब/नोट को देखे अपनी स्मृति के आधार पर इस पाठ को 50 दिनों में पूरा किया है। यह साधना जंगल की बनावट जैसी संरचना वाली है। इसमे कोई भी मंत्र सीधे क्रम में नहीं चलता इसीलिए इसे दंडक्रम कहा जाता है। इसे पूरा करने के लिए साधक को शरीर, मन, विश्वास, स्मृति सब पर नियंत्रण करना पड़ता है। देवव्रत ने पिछले 200 साल से बाद इस परंपरा को पुर्नजागृत किया है और इसीलिए राष्ट्रीय स्तर पर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें प्रशंसा मिल रही है।


PM मोदी और CM योगी ने पुरुस्कृत करते हुए की तारीफ
देवव्रत की तारीफ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट की है और उन्हें आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बताया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी वाराणसी में आयोजित इस समारोह के दौरान देवव्रत को खुद सम्मानित किया।

इस दौरान देवव्रत को सम्मान और पुरस्कार के रूप में 1,1,116 रुपए की राशि और सोने के कंगन इनाम में दिए गए। पूरा सोशल मीडिया उनके इस अभूतपूर्व उपलब्धि पर प्रसन्न दिखाई दे रहा है। सोशल मीडिया पर यहां तक कहा जा रहा है कि देवव्रत युवा पीढ़ी के लिए एक मिसाल बन गए हैं। क्योंकि आने वाले समय में यदि अन्य युवाओं ने भी देवव्रत को फॉलो किया तो निश्चित ही भारत में प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक विद्याएं पुनर्जीवित हो सकती हैं।
इस प्रकार देवव्रत की साधना केवल एक उपलब्धि नहीं है बल्कि एक सांस्कृतिक संदेश है कि किस प्रकार एक युवा 50 दिनों तक अपनी अटल साधना, श्रद्धा, स्मृति के माध्यम से इस कठिन पाठ को प्रस्तुत करता है। देवव्रत की यह उपलब्धि बताती है कि वेदों का पाठ और उच्चारण ना न केवल हमारे जीवन शैली को सुधारते हैं बल्कि हमारी याददाश्त को भी मजबूत करते हैं।

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