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Lavi Fair: यह है शीत मरुस्थल का जहाज जो माइनस तापमान में भी करता है काम! लवी मेले में दिखेंगी इस घोड़े की शान….

Lavi Fair: यह है शीत मरुस्थल का जहाज जो माइनस तापमान में भी करता है काम! लवी मेले में दिखेंगी इस घोड़े की शान….

Lavi Fair: यह है शीत मरुस्थल का जहाज जो माइनस तापमान में भी करता है काम! लवी मेले में दिखेंगी इस घोड़े की शान….
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Lavi Fair: यह है शीत मरुस्थल का जहाज जो माइनस तापमान में भी करता है काम! लवी मेले में दिखेंगी इस घोड़े की शान….

Lavi Fair: अंतरराष्ट्रीय लवी मेला रामपुर-2025 में आयोजित होने वाली अश्व प्रदर्शनी में पंजाब, हरियाणा, जम्मू एवं कश्मीर, लद्दाख से अश्वपालकों को बुलाया जाएगा। अश्व प्रदर्शनी का आकर्षण चामुर्थी घोड़े की नस्ल के बारे में अन्य राज्यों से आने वाले अश्वपालकों को विस्तृत जानकारी दी जाएगी ताकि इन राज्यों में चामुर्थी घोड़े की बिक्री हो सके। इसके साथ ही वहां के जीवन शैली में चामुर्थी घोड़े को लोग शामिल कर सके।

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Lavi Fair: यह है शीत मरुस्थल का जहाज जो माइनस तापमान में भी करता है काम! लवी मेले में दिखेंगी इस घोड़े की शान….

इसके लिए उपायुक्त शिमला के आदेशों के अनुसार पशुपालन विभाग ने उक्त राज्यों के पशुपालन विभाग को पत्राचार कर निमंत्रण भेज दिया है। उपायुक्त अनुपम कश्यप ने कहा कि लवी मेला का इतिहास सैंकड़ों वर्ष पुराना है। चामुर्थी घोड़े की बिक्री इस मेला का विशेष आर्कषण रहा है। चामुर्थी घोड़ा पहाड़ी राज्यों में काफी प्रभावी माना जाता है।

इसके प्रचार-प्रसार को बढ़ाने की दिशा में इस बार पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख से अश्वपालकों को आमंत्रित किया जा रहा है ताकि अश्व प्रर्दशनी में चामुर्थी घोड़े की खासियतों को स्वंय देख सके। अगर लोगों को पंसद आए तो खरीद भी सकते है। चीन की सीमा से लगते हिमाचल के बर्फीले कबाइली जिलों लाहौल स्पीति और किन्नौर में चामुर्थी घोड़ा सदियों से जीवन शैली का हिस्सा रहा है। वहाँ इन्हें ‘शीत मरुस्थल का जहाज’ कहा जाता है।

चामुर्थी घोड़े की ऊँचाई 12-14 हाथ तक होती है और यह माइनस 30 डिग्री तक की भीषण ठण्ड में भी काम कर सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें लम्बे समय तक कुछ न खाने के बावजूद काम करने की क्षमता होती है। इस नस्ल के घोड़ों की पहचान इनकी क्षमता और शक्ति के लिए है और इस नस्ल को भारतीय घोड़ों की छः प्रमुख नस्लों में से एक माना जाता है, जो ताकत और अधिक ऊँचाई वाले बर्फ से आच्छादित क्षेत्रों में अपने पाँव जमाने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध है।

दिलचस्प बात यह कि यह घोड़े इन बर्फीली घाटियों में सिंधु घाटी (हड़प्पा) सभ्यता के समय से पाये जाते हैं। इस घोड़े के नस्ल की उत्पति तिब्बत के पठारों में बताई जाती है, जोकि बाद में व्यापारियों द्वारा लाहौल स्पीति और किन्नौर के दुर्गम क्षेत्रों में लाए गए। वर्तमान में इस नस्ल के घोड़े मुख्यतः स्पीति घाटी की पिन वैली तथा किन्नौर जिला के भावा वैली में पाए जाते हैं।

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अश्व प्रदर्शनी का 1 नवंबर से 3 नवंबर तक आयोजन
इस वर्ष लवी मेला रामपुर के तहत यह अश्व प्रदर्शनी 1 नवंबर से 3 नवंबर 2025 तक आयोजित की जाएगी। पशुपालन विभाग हिमाचल प्रदेश द्वारा इस प्रदर्शनी में उत्तम घोड़ों का चयन किया जाता है, जिससे कि अश्वपालक प्रोत्साहित होते हैं। 1 नवंबर को अश्वों का पंजीकरण किया जाएगा।

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2 नवंबर को अश्वपालकों के लिए गोष्ठी का आयोजन किया जाएगा। 3 नवंबर को उत्तम अश्वों का चयन, गुब्बारा फोड़ प्रतियोगिता तथा 400 व 800 मीटर रोमांचक घुड़दौड़ का आयोजन किया जाएगा। विजेताओं को मुख्य अतिथि द्वारा पुरस्कृत किया जाएगा। इस अश्व प्रदर्शनी में भाग लेने वाले सभी अश्वों को पशुपालन विभाग द्वारा निःशुल्क चारा तथा दाना भी वितरित किया जाता है।

घोड़ा प्रजनन केंद्र हो रहा मददगार साबित
हिमाचल के पशुपालन विभाग ने इन बर्फानी घोड़ों को बचाने और संरक्षित रखने और पुन अस्तित्व में लाने के उद्देश्य से सन् 2002 में स्पीति घाटी के लारी में एक घोड़ा प्रजनन केंद्र स्थापित किया। यह केंद्र स्पीति नदी से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थापित किया गया है, जो राजसी गौरव और किसानों में समान रूप से लोकप्रिय घोड़ों की इस प्रतिभावान नस्ल के प्रजनन के लिए उपयोग किया जा रहा है।

इस प्रजनन केंद्र को तीन अलग-अलग इकाइयों में विभाजित किया गया है, जिसमें प्रत्येक इकाई में 20 घोड़ों को रखने की क्षमता और चार घोड़ों की क्षमता वाला एक स्टैलियन शेड है। इस केंद्र को 82 बीघा और 12 बिस्वा भूमि पर चलाया जा रहा है। विभाग इस लुप्तप्राय प्रजाति के लिए स्थानीय गाँव की भूमि का उपयोग चरागाह के रूप में भी करता है।

इस प्रजनन केंद्र की स्थापना और कई साल तक चलाये प्रजनन कार्यक्रमों के उपरांत इस शक्तिशाली विरासतीय नस्ल, जो कभी विलुप्त होने के कगार पर थी, की संख्या में निरंतर वृद्धि हुई है। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में इनकी आबादी सैंकड़ों में है।

तिब्बत से जुड़ा है इतिहास
चामुर्थी नस्ल के घोड़ों के वंशज तिब्बत सीमा की ऊँचाइयों पर पाये जाने वाले जंगली घोड़े माने जाते हैं। इस नस्ल का उद्गम स्थल तिब्बत के छुर्मूत को माना जाता है। कहा जाता है कि इसी कारण इस नस्ल के घोड़ों को चामुर्थी नाम मिला। इस नस्ल के घोड़े तिब्बत की पिन घाटी से सटे इलाके और लाहुल स्पीति जिला के काजा उप मण्डल की पिन घाटी में पाये जाते हैं।

चामुर्थी नस्ल को दुनिया के घोड़ों की मान्यता प्राप्त चार नस्लों में एक माना जाता है। इस नस्ल के घोड़े मजबूत होने के कारण बर्फीले पहाड़ों के लिए बहुत लाभदायक माने जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस नस्ल के घोड़ों में बहुत कम ही बीमारियाँ देखी जाती हैं। हिमाचल के किन्नौर जिला के पूह उप मण्डल से भी व्यापारी तिब्बत जाकर चमुर्थी घोड़े लाते रहे हैं, लेकिन वहाँ माँग अधिक होने के कारण घोड़ों का व्यापार सिरे नहीं चढ़ रहा है।

कहा जाता है कि पिन घाटी में नसबंदी किये घोड़े बेचे जाते हैं। क्योंकि वहाँ के लोगों की मान्यता है कि ऐसा नहीं करने से स्थानीय देवता नाराज होते हैं। हालाँकि पशु विशेषज्ञों के मुताबिक, इससे इस नस्ल के विस्तार की कोशिशों को नुक़सान पहुँचता है। हर साल पिन घाटी में चामुर्थी नस्ल के घोड़े पाये जाने वाले इलाक़ों में अप्रैल-मई में हर गाँव में नस्ल विस्तार वाला नया घोड़ा चुना जाता है। लोग अपने नए जन्मे घोड़ों को एक जगह इकट्ठा करके उनमें से सबसे बढिया घोड़े का चयन करते हैं। हालाँकि बाक़ी घोड़ों की घरेलू तरीक़े से नसबंदी कर दी जाती है।

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Written by News Ghat

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