HP News: नौकरी छोड़ किसान बने इंजीनियर शक्ति देव! अब खेती से कमा रहे हज़ारों रूपए
HP News: आज के दौर में जब युवा पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश में बड़े-बड़े शहरों और मल्टीनैशनल कंपनियों की ओर रुख करते हैं, वहीं कांगड़ा जिले के ग्राम डिक्टू, पंचायत झियोल, ब्लाॅक धर्मशाला के रहने वाले शक्ति देव ने बिल्कुल अलग रास्ता चुना। उन्होंने न सिर्फ इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, बल्कि कई साल तक प्राइवेट सेक्टर में काम भी किया।
HP News: नौकरी छोड़ किसान बने इंजीनियर शक्ति देव! अब खेती से कमा रहे हज़ारों रूपए
लेकिन 2012 में उन्होंने एक बड़ा निर्णय लिया, नौकरी छोड़कर अपने पुश्तैनी खेतों की ओर लौटने का।शक्ति देव कहते हैं ‘‘शायद अपनी मिट्टी की खुशबू, माता-पिता का प्यार और अपनी मेहनत से कुछ कर गुजरने का जज़बा ही मुझे वापस खींच लाया।
रासायनिक खेती से प्राकृतिक खेती तक का सफर
पाॅलिटेक्निक इंजीनियरिंग इन डबल स्ट्रीम करने वाले शक्ति देव ने भी शुरुआत में अधिकांश किसानों की तरह रासायनिक खेती अपनाई। उनके पिता ने पहले से ही खेतों में आम और लीची के बाग लगाए थे। लेकिन समय के साथ यह साफ हो गया कि रासायनिक खेती में मेहनत और खर्च तो अधिक है, पर लाभ नगण्य।

इससे वे असंतुष्ट रहे। 2015 में उन्होंने ऑर्गेनिक खेती के सिद्धांतों पर काम शुरू किया और 2018 में नौणी स्थित कृषि विश्वविद्यालय से एक माह का प्रशिक्षण प्राप्त किया। यह प्रशिक्षण उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। प्राकृतिक खेती को अपनाने के बाद उन्होंने जीवामृत, घन जीवामृत, दशपर्णी अर्क और अग्नियास्त्र जैसे देसी तरीकों का प्रयोग शुरू किया। आत्मा विभाग और कृषि विभाग से समय-समय पर सहयोग मिला। उन्हें देसी गाय के लिए अनुदान भी मिला, जिससे खेती का आधार और मजबूत हुआ।
खेती में बदलाव और स्थिरता
प्राकृतिक खेती ने शक्ति देव के खेतों की सूरत बदल दी। रासायनिक खेती में जहाँ खर्चा उपज से अधिक हो जाता था, वहीं प्राकृतिक खेती में लागत घटने लगी। मिट्टी की उर्वरता और फसलों की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ। पहले जहाँ उन्हें मार्केटिंग की समस्या झेलनी पड़ती थी, अब उन्होंने सीधे कुछ चुनिंदा परिवारों से जुड़कर अपनी बिक्री का एक स्थिर नेटवर्क बना लिया। आज उनकी खेती पूरी तरह आत्मनिर्भर है।
खेतों में सालभर अलग-अलग फसलें तैयार रहती हैं। इसके अलावा उन्होंने फूलों की खेती और नर्सरी की ओर भी कदम बढ़ाए हैं। लीची का बाग और गौ पालन उनकी खेती का अभिन्न हिस्सा हैं। शक्ति देव ने बताया कि प्राकृतिक खेती से और फार्म के एग्रीकल्चर सारी एक्टिविटी से उन्हें प्रतिमाह लगभग 30 से 40 हजार की आय हो जाती है।
समाज के लिए योगदान
शक्ति देव केवल खुद के लिए ही खेती नहीं कर रहे, बल्कि अपने आस-पास के गाँवों के किसानों को भी इसके लिए जागरूक कर रहे हैं। वे जगह-जगह जाकर लोगों को समझाते हैं कि प्राकृतिक खेती न केवल किसान के लिए लाभकारी है, बल्कि यह पर्यावरण और आने वाली पीढ़ियों के लिए भी बेहद आवश्यक है।
पर्यावरण अनुकूल प्रक्रिया
शक्ति देव ने शून्य जुताई (जीरो टिलेज) तकनीक को अपनाकर खेतों में बीज बोने की प्रक्रिया को सरल और पर्यावरण अनुकूल बनाया है। इस पद्धति में बीज बोने के लिए सीधे खेत में छेद करके बीज डाला जाता है, जिससे मिट्टी की नमी संरक्षित रहती है और बीज स्वाभाविक रूप से अंकुरित हो जाता है। शक्ति देव ने बताया कि बीज की शुरुआती खुराक के लिए उन्होंने देसी गाय के गोबर और गोमूत्र से तैयार जीवामृत का प्रयोग किया है।
यह मिश्रण एक बार तैयार करने पर लगभग छह महीने तक सुरक्षित रहता है और फसलों को पोषण देने में कारगर सिद्ध होता है। उन्होेंने बताया कि मौजूदा सीजन में फूलगोभी जैसी सब्जियों की बुवाई के समय पौधों को गड्ढों में लगाकर जीवामृत का उपयोग कर रहे हैं। इससे न केवल पौधों की वृद्धि तेज होती है, बल्कि मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीवों की संख्या भी बढ़ती है, जो फसलों के लिए लाभकारी हैं।
इसके अतिरिक्त शक्ति देव ने बताया कि वे दशपर्णी अर्क भी तैयार कर रहे हैं। इस अर्क को बनाने में स्थानीय स्तर पर उपलब्ध 10 प्रकार की कड़वी पत्तियों का उपयोग किया जाता है, साथ ही इसमें देसी गाय का गोबर और गोमूत्र भी डाला जाता है। यह प्राकृतिक कीटनाशक फसलों में लगने वाले कीड़ों से बचाव करता है। इसे पानी के साथ 1ः10 के अनुपात में मिलाकर फसलों पर छिड़काव किया जाता है।
शक्ति देव ने कहा कि इन प्राकृतिक विधियों से खेती करने पर न केवल लागत घटती है बल्कि मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरणीय संतुलन भी सुरक्षित रहता है। उन्होंने अन्य किसानों से भी अपील की कि वे रासायनिक खेती की बजाय प्राकृतिक खेती अपनाकर अपने स्वास्थ्य और प्रकृति की रक्षा करें। उनका मानना है कि प्राकृतिक खेती पर्यावरण के अनुकूल है। इससे खेत की मिट्टी जीवित रहती है और उपज की गुणवत्ता बेहतर होती है।
पारंपरिक देसी बीजों का प्रदर्शन इसमें अधिक सफल रहता है, जबकि आधुनिक ‘‘माॅडिफाइड बीज’’ लंबे समय में मिट्टी और किसान दोनों पर बोझ डालते हैं। इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले शक्ति देव आज कहते हैं ‘‘चाहे मैंने तकनीकी शिक्षा प्राप्त की है, लेकिन अपनी जमीन पर कुछ उगाने का आनंद और आत्मसंतोष ही अलग है। यही सच्चा सुख है।’’ उनकी मेहनत और लगन इस बात का उदाहरण है कि यदि संकल्प हो तो कोई भी युवा खेती को न केवल सम्मानजनक पेशा बना सकता है, बल्कि समाज और पर्यावरण के लिए भी सकारात्मक बदलाव ला सकता है।
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