Paonta Sahib: किसानों की बेदखली के खिलाफ हिमाचल में जोरदार प्रदर्शन, सरकार को भेजा ज्ञापन! 3-4 मई को सचिवालय घेराव की चेतावनी
Paonta Sahib: हिमाचल किसान सभा और सेब उत्पादक संघ ने प्रदेश भर में किसानों की बेदखली के खिलाफ प्रदर्शन किया।
विभिन्न जिलों में प्रशासन, वन विभाग और राजस्व विभाग के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजे गए। पांवटा में भी किसान इकाई ने बड़ी संख्या में महिलाओं और किसानों के साथ प्रदर्शन रैली निकाली।
किसानों की मांगें और सरकार को चेतावनी
हिमाचल किसान सभा के उपाध्यक्ष राजेंद्र ठाकुर ने बताया कि मंगलवार को एसडीएम पांवटा गुंजीत चीमा के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा गया।
उन्होंने बताया कि शिमला, सोलन, सिरमौर, कांगड़ा, मंडी और कुल्लू में किसानों ने उपायुक्त, उपमंडलाधिकारी और वन विभाग के कार्यालयों के बाहर प्रदर्शन किया।
किसानों की प्रमुख मांगें हैं:
✔ बेदखली तुरंत रोकी जाए
✔ पेड़ काटना, बिजली-पानी के कनेक्शन काटना और घरों को तोड़ना बंद किया जाए
✔ 2015 में विधानसभा में पारित संकल्प को लागू किया जाए
यदि सरकार ने इन मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो किसान 3-4 मई को राज्य सचिवालय का घेराव करेंगे।
न्यायालय के आदेशों की अनदेखी का आरोप
ज्ञापन में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने भूमि बेदखली को अवैध ठहराया है, फिर भी हिमाचल प्रदेश में हजारों बेदखली आदेश जारी किए गए हैं। किसान बिना किसी वैध प्रक्रिया के बेघर किए जा रहे हैं।
2000 में हुए भूमि राजस्व अधिनियम 1953 में संशोधन के तहत 1.67 लाख किसानों ने सरकारी जमीन के नियमितीकरण के लिए आवेदन किया था, लेकिन अब उन्हें जबरन हटाया जा रहा है।
प्राकृतिक आपदाओं से बर्बाद हुई भूमि
प्रदेश में भूकंप, बाढ़, भूस्खलन और ग्लेशियर पिघलने जैसी आपदाओं से किसानों की जमीन पहले ही नष्ट हो चुकी है। सरकार से मांग की गई है कि भूमिहीन और प्रभावित किसानों को कम से कम 5 बीघा भूमि दी जाए।
वनाधिकार अधिनियम लागू करने की मांग
किसानों का कहना है कि वनाधिकार अधिनियम 2006 के तहत किसानों को उनके अधिकार मिलने चाहिए, लेकिन सरकारी विभाग इसे लागू नहीं कर रहे हैं।
किसानों के लिए राहत और पुनर्वास की मांग
✔ बेदखली पर रोक लगाई जाए
✔ प्रभावित किसानों को 7 लाख रुपये का विशेष पैकेज दिया जाए
✔ भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के तहत उचित मुआवजा दिया जाए
✔ सड़क किनारे छोटे दुकानदारों की बेदखली रोकी जाए
यदि मांगें नहीं मानी गईं तो किसान बड़ा आंदोलन करने के लिए मजबूर होंगे।