Premanand Maharaj Updesh: प्रेमानंद महाराज के 17 सबसे अहम उपदेश! इन उपदेशों को अपनाएंगे तो हो जाएंगे खुशहाल
Premanand Maharaj Updesh: आज के इस युग में मानसिक और आध्यात्मिक विकास बहुत ही आवश्यक हो चुके हैं। भागती दौड़ती सी जिंदगी में कुछ देर का ठहराव अत्यंत आवश्यक बन गया है।
ऐसे में इस ठहराव के दौरान यदि आप सच्ची भक्ति और आत्म सुधार करना चाहते हैं तो प्रेमानंद जी महाराज के कुछ विशेष उपदेश आपके जीवन को पूरी तरह से बदलने में आपकी सहायता कर सकते हैं।
प्रेमानंद जी महाराज के द्वारा दिए गए उपदेश न केवल धार्मिक चेतना जगाते हैं बल्कि हमें व्यवहारिक ज्ञान भी देते हैं जो की हमारे रोजमर्रा के जीवन में अत्यंत प्रासंगिक सिद्ध होते हैं।
आज के इस लेख में हम आपको प्रेमानंद जी महाराज के द्वारा दिए गए 17 अहम उपदेशों का संक्षिप्त विवरण उपलब्ध करवाने वाले हैं, जिसके माध्यम से आप भी प्रेमानंद जी महाराज के धार्मिक दृष्टिकोण को जान सकेंगे और अपने मन, मस्तिष्क, शरीर आत्मा को आध्यात्म की ओर अग्रसर कर पाएंगे।
क्या है प्रेमानंद जी महाराज दिए गए 17 अहम उपदेश
आत्मा और परमात्मा का मिलन ही जीवन का परम लक्ष्य : प्रेमानंद जी महाराज का कहना है कि व्यक्ति की आध्यात्मिक जागृति ही उसके जीवन का अंतिम लक्ष्य है।
बाहरी सुख सुविधा केवल क्षण भर की होती है परंतु व्यक्ति के लिए जरूरी है कि वह अपने अंदर छिपे ज्ञान और दिव्यता को पहचाने और आत्म चिंतन कर स्वयं को खोजें।
भक्ति मार्ग का अनुसरण : प्रेमानंद जी महाराज भक्ति को एक ऐसा दिव्य मार्ग बताते हैं जो व्यक्ति के लिए काफी प्रभावी मार्ग सिद्ध हो सकता है।
प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं की भक्ति व्यक्ति को ईश्वर के करीब ले जाती है और व्यक्ति के जीवन को आनंदमय और शांत बना देती है जिसकी वजह से व्यक्ति एकाग्र चित्त होकर कठिनाइयों का सामना कर पता है।
सरलता और विनम्रता को अपनाएं: प्रेमानंद जी महाराज का जीवन सरलता और विनम्रता का जीता जागता उदाहरण है। भौतिक सुख सुविधाओं से ऊपर उठकर अपने आप को विनम्र बनाना और आत्म संतुष्टि की ओर बढ़ना की व्यक्ति का असली मकसद है।
संतुलित जीवन अपनाएं: प्रेमानंद जी महाराज भौतिक और आध्यात्मिक सुखों के मेल को ही एक संतुलित जीवन मानते हैं।
रोजाना दैनिक कामकाजी गतिविधियों के साथ-साथ ध्यान साधना और भक्ति के लिए समय निकालना हर व्यक्ति के लिए जरूरी है ताकि व्यक्ति भौतिक सुखों के साथ-साथ तनाव रहित जीवन भी प्राप्त कर सके।
शुद्ध आचरण और विचार : प्रेमानंद जी महाराज हमेशा विचारों को शुद्ध रखने के लिए कहते हैं। शुद्ध विचार ही सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत कहलाते हैं ऐसे में यदि आप अपने जीवन में नैतिकता ईमानदारी और सत्य निष्ठा को अपनाते हैं तो आपका जीवन आनंदमय हो जाता है।
एक दूसरे की मदद करना : प्रेमानंद जी महाराज हमेशा अपने उपदेश में कहते हैं कि व्यक्ति को समाज की सेवा और जरूरतमंद की सेवा करनी चाहिए।
सेवा के माध्यम से हम अपने अंदर की करुणा को जागृत करते हैं। इस करुणा की वजह से ही हम अपने आप में सकारात्मक बदलाव ला पाते हैं ।इस सेवा भाव से हमारे कर्म भी शुद्ध होते हैं।
प्रकृति और पर्यावरण की देखभाल : प्रेमानन्द जी महाराज अपने उपदेशों के माध्यम से लोगों को प्रकृति और पर्यावरण की देखभाल के लिए भी जागृत कर रहे हैं।
वह कहते हैं कि पृथ्वी हमारी माता है जिसका संरक्षण हम सबको मिलकर करना होगा।
प्रकृति और पर्यावरण से ही जीव का अस्तित्व टिका है ऐसे में यदि हम प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण नहीं करेंगे तो हमारा भी नाश हो जाएगा।
गुरु का सम्मान : प्रेमानंद महाराज जी गुरु को जीवन का मार्गदर्शन बताते हैं। वह कहते हैं कि जीवन में गुरु होना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि गुरु के द्वारा ही आत्म ज्ञान की प्राप्ति होती है और गुरु से मिले हुए आशीर्वाद से व्यक्ति को मोक्ष मिल सकता है।
कर्मों के फल की प्राप्ति : प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि व्यक्ति के जीवन में यदि कष्ट है और दुख है तो यह केवल उसके प्रारब्ध हैं। ऐसे में व्यक्ति को प्रारब्ध को स्वीकार कर लेना चाहिए।
स्वीकार करने की वजह से जीवन आसान हो जाता है और हम आत्म जागरूक हो जाते हैं जिसकी वजह से कष्टमय जीवन भी आसान प्रतीत होने लगता है।
मानवता और करुणा को अपनाएं: प्रेमानंद जी महाराज अपने हर प्रवचन में धर्म, भाषा ,जाति -पाति इत्यादि की सीमाओं से ऊपर उठकर कार्य करने के लिए उपदेश देते हैं।
वह कहते हैं कि पूरी दुनिया का एक ही धर्म है और वह है मानवता। प्रत्येक मानव में करुणा और सहानुभूति होनी आवश्यक है क्योंकि इसी की वजह से हम एक दूसरे के करीब रहते हैं और समाज में सामंजस्य बना रहता है।
आत्म निरीक्षण और स्वयं में सुधार : प्रेमानन्द महाराज आत्मनिरीक्षण को अत्यधिक महत्व देते हैं। वह कहते हैं कि व्यक्ति यदि स्वयं अपनी गलतियों को पहचान कर उसमें सुधार करें तो व्यक्ति का आत्म विकास होता है और व्यक्ति स्वयं के मन को भी शुद्ध कर पता है।
खुद पर नियंत्रण : प्रेमानंद जी महाराज क्रोध को मानसिक शांति का हत्यारा बताते हैं। प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि क्रोध की वजह से व्यक्ति नकारात्मक ऊर्जा को अनावश्यक रूप से अपने पास लेकर आ जाता है।
व्यक्ति को चाहिए कि वह क्रोध की बजाय संयम और धैर्य अपनाएँ जिससे व्यक्ति आपसी संबंधों में भी सुधार ला सकता है और जीवन में स्थाई सुख प्राप्त कर सकता है।
अहंकार से मुक्ति :-प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि अहंकार इंसान को उसके असली मार्ग से भटकाता है। अहंकारी व्यक्ति कभी भी मुक्ति नहीं पा सकता।
अहंकारी व्यक्ति के अंदर स्वार्थ तत्व भर जाता है जिसकी वजह से वह खुद को दूसरों से सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है और यही उसके पतन का कारण बनता है।
ध्यान और साधना का मार्ग : प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि व्यक्ति को भौतिक सुख सुविधाओं को प्राप्त करने के साथ-साथ ध्यान और साधना भी रोजाना करनी चाहिए।
ध्यान और साधना से मन को एकाग्र किया जा सकता है और आंतरिक शांति प्राप्त की जा सकती है इस ज्ञान की वजह से व्यक्ति जीवन के कई सारे रहस्यों को भी जानता है।
भविष्य की चिंता छोड़कर वर्तमान में जीना: प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि वर्तमान में जीना हमारे लिए अति आवश्यक है। हम भूत भविष्य की चिंता में उलझ कर वर्तमान के सुंदर पल को व्यर्थ कर देते हैं।
व्यक्ति का जीवन केवल वर्तमान की सांसों पर ही टिका होना चाहिए इससे छोटे-छोटे आनंद का एहसास होता है और मानसिक संतुलन बना रहता है।
प्रेम को मानें सर्वश्रेष्ठ मार्ग : प्रेमानंद महाराज जी प्रेम को भक्ति का सर्वश्रेष्ठ मार्ग बताते हैं। वह कहते हैं कि प्रेम का मार्ग अपनाकर व्यक्ति केवल स्वयं को नहीं बल्कि आसपास के लोगों को भी बदलने में सक्षम हो जाता है। प्रेम ही व्यक्ति में सहानुभूति और दया की भावना का संचार करता है।
संतोष पूर्ण जीवन : प्रेमानंद जी महाराज का कहना है कि व्यक्ति के जीवन का सच्चा सुख बाहरी उपलब्धियों में नहीं है बल्कि जितना पाया है उसमें संतोष करने में है। संतोष ही व्यक्ति को गहरी शांति प्रदान करता है और कई सारी असफलताओं के बावजूद भी जुझारू बनने की शक्ति देता है।
आखरी बात…
प्रेमानंद महाराज जी द्वारा दिए गए यह 17 अहम उपदेश एक व्यक्ति के जीवन को सही दिशा देने के लिए पर्याप्त है।
आत्म जागृति, भक्ति और धार्मिक चेतना से जुड़े यह उपदेश व्यक्ति को न केवल भौतिक सुख प्रदान करते हैं बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक संतोष भी देते हैं।