Sirmour News : सीने पर देश का नाम था… इसलिए मौत भी सलाम कर गई! लांस नायक मनीष ठाकुर हुए शहादत को प्राप्त
सिरमौर की हरी-भरी वादियों में बसा एक छोटा-सा गांव—बड़ाबन। यहीं की मिट्टी में 27 साल पहले एक बेटे ने जन्म लिया था, जो आज उसी मिट्टी में देश के लिए बलिदान होकर लौट रहा है। नाम था—मनीष ठाकुर। उम्र—सिर्फ 27 वर्ष। और दिल… वो तो बचपन से ही देश के लिए धड़कता था।
जब मनीष छोटा था, तब गांव की पगडंडियों पर दौड़ते हुए अक्सर पेड़ की टहनियों को सलामी देता। लोग मुस्कुराकर कहते, “देखो, ये तो फौजी बनेगा।” किसे पता था कि वो सलामी एक दिन सच में देश के झंडे को दी जाएगी—लेकिन उसके पार्थिव शरीर पर लिपटे तिरंगे के साथ।
2016 में मनीष ने वर्दी पहनी, आंखों में गर्व और दिल में सेवा का जुनून लिए। आठ सालों तक देश की सरहदों की रक्षा की, लेकिन नियति ने कुछ और ही लिखा था। 2025 की भीषण बारिशों में सिक्किम तबाही से जूझ रहा था—और मनीष, आपदा राहत कार्य में तैनात था। जान बचाने गया था… लेकिन अपनी जान गंवाकर अमर हो गया।
जिस दिन यह खबर बड़ाबन पहुंची, गांव की हवाएं भी थम गईं। माँ किरण बाला का कलेजा फट गया, लेकिन आंखों में आंसुओं के बीच एक दृढ़ता भी थी—“मेरा बेटा देश के लिए मरा है।” पिता जोगिंदर सिंह—जिनकी पीठ अब थोड़ी और झुक गई थी, फिर भी उन्होंने छाती चौड़ी कर कहा—“हमें उस पर गर्व है।” पत्नी तनु देवी… जिनकी शादी को अभी कुछ ही साल हुए थे, अब उसकी तस्वीरों को सीने से लगाकर हर सांस ले रही हैं।
गांव की हर गली, हर बच्चा, हर बुजुर्ग—हर कोई बस एक ही नाम ले रहा था—मनीष… मनीष…
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भी शोक जताया और कहा—“ऐसे बेटे हर घर में नहीं होते, ये पूरे प्रदेश का बेटा था।” सेना, प्रशासन और सैकड़ों गांववाले मिलकर अपने इस वीर को अंतिम विदाई देंगे। पूरा गांव इंतजार कर रहा है उस तिरंगे से लिपटे बेटे का, जिसे वो सलामी देंगे… रोकर भी, गर्व से भी।
कहते हैं, शहीद मरते नहीं… वो मिट्टी में मिलकर चिरंजीवी हो जाते हैं। मनीष ठाकुर अब सिर्फ बड़ाबन का नहीं, हर उस दिल का हिस्सा बन गए हैं जो वर्दी को सलाम करता है।
“एक मां ने अपना लाल खोया, लेकिन देश ने एक अमर सपूत पाया।
जब भी तिरंगा लहराएगा, मनीष ठाकुर याद आएगा।”
जय हिंद | शहीद मनीष ठाकुर अमर रहें