Vettaiyan Review: क्या न्याय के नाम पर मुठभेड़ सही है? जब न्याय के रास्ते से भटक जाए एक पुलिस अधिकारी
Vettaiyan Review: राजनी और ग्ननावेल की जोड़ी फिर से लाए एक नई कहानी
Vettaiyan Review: सुपरस्टार रजनीकांत की फिल्म ‘वेत्तैयन’ ने बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों के बीच काफी चर्चा बटोरी है।
इस फिल्म का निर्देशन टीजे ग्ननावेल ने किया है, जो अपनी पिछली फिल्म ‘जय भीम’ के लिए जाने जाते हैं।
Vettaiyan Review: क्या न्याय के नाम पर मुठभेड़ सही है? जब न्याय के रास्ते से भटक जाए एक पुलिस अधिकारी
इस बार, ग्ननावेल ने एक पुलिस थ्रिलर को सामाजिक मुद्दे के साथ जोड़ा है। लेकिन, क्या इस कहानी में रजनीकांत की स्टाइल और स्टारडम हावी रही, या ग्ननावेल का संदेश दर्शकों तक पहुंच पाया?
जब न्याय के रास्ते पर भटक जाता है एक पुलिस अधिकारी..
फिल्म की कहानी एसपी अथियन (रजनीकांत) की है, जिन्हें अपने विभाग में ‘वेत्तैयन’ यानी शिकारी कहा जाता है। वह मुठभेड़ के ज़रिए अपराधियों को सजा देने में यकीन रखते हैं और उनका मानना है कि ‘देरी से मिला न्याय, अन्याय के समान है।’
लेकिन उनकी ये धारणा तब हिल जाती है जब एक मुठभेड़ के दौरान वह गलती से एक निर्दोष व्यक्ति को मार डालते हैं।
इस गलती का एहसास होने के बाद, उनके विचारों में एक बदलाव आता है और वह उस असली अपराधी की तलाश में जुट जाते हैं, जिसने एक स्कूल शिक्षिका का रेप और मर्डर किया था।
इस बीच, न्यायाधीश सत्यदेव (अमिताभ बच्चन) उनके खिलाफ खड़े होते हैं और कहते हैं, ‘जल्दबाज़ी में दिया गया न्याय, अन्याय है।’
पहली छमाही रोमांचक, दूसरी आधी उपदेशात्मक
फिल्म की शुरुआत में 30 मिनट पूरी तरह से रजनीकांत के स्टाइल और फैन मोमेंट्स पर फोकस करती है। एक्शन, डांस और उनकी खास अंदाज में संवाद प्रस्तुति से दर्शकों को रोमांच मिलता है।
इसके बाद, कहानी तेज़ी से एक इन्वेस्टिगेशन थ्रिलर में बदल जाती है। रजनीकांत का एसपी अथियन, मीडिया और राजनीतिक दबाव में, तुरंत न्याय दिलाने के नाम पर एक निर्दोष की हत्या कर बैठता है।
इस मोड़ के बाद फिल्म थोड़ा गंभीर हो जाती है और कहीं-कहीं यह दर्शकों को उपदेशात्मक लगने लगती है।
समाज के दो वर्गों पर फिल्म की गहरी टिप्पणी
‘वेत्तैयन’ सिर्फ एक थ्रिलर नहीं, बल्कि यह फिल्म कई गंभीर सवाल उठाती है।
फिल्म दिखाती है कि कैसे पुलिस और न्याय व्यवस्था अक्सर गरीबों को ही निशाना बनाती है, जबकि अमीर हमेशा बच निकलते हैं।
इसके साथ ही, फिल्म मीडिया, फेक न्यूज और जन दबाव के चलते पुलिस के गलत फैसलों पर भी सवाल खड़े करती है।
अभिनय और तकनीकी पक्ष..
रजनीकांत ने अपने किरदार में जान डाल दी है, लेकिन उनके स्टारडम के चलते बाकी कलाकारों के किरदार फीके पड़ जाते हैं।
फहाद फासिल ने एक होशियार चोर की भूमिका में अच्छी छाप छोड़ी है, जबकि अमिताभ बच्चन और रजनीकांत के बीच के संवाद थोड़े कमजोर रहे।
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राणा डग्गुबाती एक शातिर व्यापारी के किरदार में आखिरी पलों में नजर आते हैं, लेकिन उनका अभिनय ठीक-ठाक है।
क्यों देखनी चाहिए ‘वेत्तैयन’?
अगर आप राजिनी के फैन हैं और एक पुलिस थ्रिलर की तलाश में हैं, तो ‘वेत्तैयन’ आपको निराश नहीं करेगी।
हालांकि, फिल्म की लंबाई और कुछ जगहों पर इसका उपदेशात्मक होना, थोड़ा खलता है।
लेकिन, यह फिल्म पुलिस और न्याय व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करने के लिए जरूर देखी जानी चाहिए।