क्यों खास हैं सिरमौरश्री दिनेश पुंडीर, पढ़ें कैसी रही पत्रकारिता में 18 साल के संघर्ष की दास्तान
18 वर्ष की पत्रकारिता में अपने शुरूआती दिनों को याद करते हुए दिनेश पुंडीर ने कहा कि अपने जन सेवा व अंतर्मुखी व्यक्तित्व को बदलने के मकसद से इस क्षेत्र में आए थे। शुरू से ही पत्रकारिता में रुचि थी। फिर, इस क्षेत्र में करियर बनाने का फैसला किया।
सोमवार को शिक्षक दिवस पर मुख्य अतिथि जिलाधीश ने पत्रकारिता के लिए स्मृति चिन्ह व सम्मानपत्र देकर सम्मानित किया।
गिरिपार क्षेत्र के कफोटा उपमंडल की ग्राम पंचायत दुगाना में श्रीमति सैलो देवी और स्वर्गीय श्री शुप्पा राम पुंडीर के पुत्र दिनेश कुमार पुंडीर का जन्म 10 मार्च 1979 को दुगाना गांव में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा गांव दुगाना के प्राथमिक पाठशाला और फिर जमा दो तक की शिक्षा राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय कफोटा से की।
साधारण किसान परिवार से संबंध रखने वाले दिनेश पुंडीर की जमा दो तक की शिक्षा में बड़े भाई इंदर सिंह पुंडीर ने सहयोग किया। उसके बाद उच्च शिक्षा की आस थी लेकिन आय के सीमित साधन इजाज़त नही दे रहे थे।
ऐसे में जमा दो पास कर चुके मंझले भाई धनबीर सिंह पुंडीर ने छोटे भाई की भावनाओं को समझा और पढ़ाई छोड़कर एक करियाना की दुकान में नौकरी कर दिनेश पुंडीर को पाँवटा साहिब कॉलेज में दाखिला दिलवाया।
घर से अप-डाऊन कर तीन वर्ष में ग्रेजुएशन कंप्लीट की। इस दौरान पुंडीर ट्रैवल्स के बस संचालक का बड़ा सहयोग रहा, जिनकी वजह से न जाने कितने ही आर्थिक स्थिति से कमजोर बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर सके। इन्होंने अपनी बसों में कभी भी किराया नही लिया
पत्रकार की कहानी उन्ही की जुबानी
उन्होंने कहा कि लिखने का शौंक बचपन से ही था, सुंदर लिखावट के लिए भी हमेशा गुरूजनों से शाबाशी मिलती थी और स्कूल में एनएसएस कैंप की रिपोर्टिंग भी करता था।
फिर वर्ष 2004 मे मौका मिला जब तत्कालीन जिला ब्यूरो शैलेंद्र कालरा की अगुवाई में एक दैनिक अखबार दिव्य हिमाचल का हिस्सा बना और छोटे से स्टेशन कफोटा से लिखना शुरू किया। अखबार के संपादक आदरणीय अनिल सोनी जी का बड़ा सहयोग रहा।
वो अक्सर कहा करते हैं कि असल रिपोर्टिंग ग्रामीण क्षेत्र से होती है, क्योंकि पत्रकार जमीन से जुड़कर काम करता है। अधिकांश समस्याएं भी गाँवो में ही होती है। वर्ष 2007 में पदोन्नत कर शिलाई भेजा गया और उसके बाद वर्ष 2011 में पाँवटा साहिब में बतौर कार्यालय संवाददाता के रूप मे कार्यभार संभाला।
वर्ष 2020 में अख़बार से रिजाइन कर अपना वेब पोर्टल “देश दिनेश न्यूज पोर्टल” शुरू किया। 16 वर्ष के प्रिंट मिडिया के कार्यकाल में दो बार जिला के सर्वश्रेष्ठ पत्रकार का सम्मान भी मिला। अब डिजिटल मीडिया के माध्यम से जनमानस की सेवा में जुटे हुए हैं और जनता और सरकार के मध्य सेतू का कार्य कर रहे हैं।
पिता जी का साया बचपन में ही सिर से उठ गया था जब करीब अढाई वर्ष का रहा हूंगा मैं। माता जी ने कड़ी मेहनत और कठिनाईयों को पार कर हमारा पालन पोषण किया। तीन भाई और एक बहन है। मैं सबसे छोटा। बड़े भाई खेतीबाड़ी का काम देखते है जबकि मंझले भाई प्राइवेट फाइनेंस में जाॅब करते हैं।
स्कूल टाईम में नवयुवक मण्डल में रहा। ग्यास पर्व पर नाटक मंचन करते थे , जिसमे विश्वामित्र की भूमिका अदा करता था। उसके बाद कफोटा में क्षेत्रीय विकास समीति, शिलाई में हिमालयन यूथ स्पोर्ट्स क्लब में भी बतौर सदस्य सेवाएं दी। पांवटा साहिब आकर नागरिक कल्याण समीति में बतौर प्रेस सचिव और राजपूत महासभा पांवटा साहिब और हाटी समीति में भी जुड़े हैं।
पत्रकारिता के साथ साथ मधुर संगीत सुनना, बैडमिंटन और क्रिकेट खेलना तथा अनछूए पहलुओं पर लिखना शौंक है। स्कूल टाईम से ही रिजर्व सा था, शायद घर की कंडीशन को बचपन में ही भांप गया था, फिर सोंचता था कि कुछ करना है परिवार के लिए।
एक दो बार सरकारी जाॅब के लिए भी कौशिश की, परंतु असफल रहा। फिर भाई ने बोला कि कोई न कोई ऐसा काम कर ले जिससे तेरा अपना खर्च चल सके। परिवार का हम देख लेंगे। गांव में भी ज्यादा भीडभाड में जाना पसंद नही था। गिने चुने दो तीन मित्र होते थे जिनके साथ अपने पल साझा होते थे।
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शिलाई में वरिष्ठ पत्रकार जगत सिंह तोमर का बड़ा सहयोग रहा। उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला। पाँवटा साहिब आया तो आपका सबसे ज्यादा सहयोग वरिष्ठ पत्रकार व समाजसेवी आरपी तिवारी जी का मिला, अन्य वरिष्ठ पत्रकारों ने भी हमेशा मनोबल बढ़ाया। फिर सचिन से मुलाकात हुई। वो भी मेरी तरह रिजर्व रहता था, दोनो के विचार मिले और अच्छी दोस्ती के रूप से सामने आए।
कोरोना काल में कठिन दौर जरूर था लेकिन अपने आप को साबित भी करना था इसलिये जब लोग घरों में थे तो हम फील्ड में निकले। पूरी ऐहतियात के साथ रिपोर्टिंग की। ऐसे स्थानों पर जाकर भी कवरेज की जहां पर संक्रमित मरीज रखे गये थे। धन्यवाद करना चाहूंगा डाॅ रोहताश नांगिया का जिनकी दी मेडिसिन लगातार लेता रहा और आज तक पॉजिटिव नही हुआ।
कोरोना काल का यादगार एक वाक्या
दिल्ली से कुछ लोग पाँवटा साहिब भी पंहुचे तो एक धार्मिक गुरू के पास बाइट लेने गये। बैठे, बाईट ली, बातचीत भी की। वापिस आकर दूसरे दिन वो धार्मिक गुरू पॉजिटिव निकले। हमने एहतियात बरती थी तो टेस्ट करवाने के बाद भी रिपोर्ट नेगेटिव आई।
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