पीतल के बर्तन को क्यों माना गया है शुभ, जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी काम में पीतल का क्यों होता है इस्तेमाल ?
धार्मिक शास्त्र और ज्योतिषी में भी पीतल के बर्तनों को पूजा के लिए उत्तम बताया गया है पीतल के बर्तन में पूजा करने से ना केवल देवी देवता प्रसन्न होते हैं बल्कि इससे ग्रह शांति भी होती है। सभी धातुओं में से पीतल को सबसे शुद्ध और पवित्र माना गया है। अन्य धातुओं के बजाय पीतल का इस्तेमाल सबसे अधिक किया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, पीतल या ब्रास के बर्तन का रंग पीला होता है और धार्मिक या मांगलिक किसी भी अनुष्ठानों में पीला रंग को बेहद शुभ माना गया है। बता दे कि पीला रंग भगवान विष्णु को संबोधित करता है तथा गणेश भगवान का यह अत्यंत प्रिय रंग है बृहस्पतिवार को पूजा में पीतल का बर्तन इस्तेमाल करने से जिंदगी में सुख का आगमन होता है।
पूजा के दौरान भगवान को भोग पीतल के बर्तन में ही लगाना चाहिए शिव जी को भी पीतल के लोटे से ही अभिषेक करना चाहिए तथा घर के मंदिर में पूजा का जल भी पीतल के कलश में ही रखना चाहिए।
पूजा-पाठ ही नहीं, जन्म से लेकर मृत्यु तक होता है पीतल के बर्तनों का उपयोग
पीतल के बर्तनों का उपयोग केवल पूजा-पाठ या धार्मिक अनुष्ठानों में ही नहीं, बल्कि हिंदू धर्म में पीतल के बर्तन का उपयोग जन्म से लेकर मृत्यु तक होता है। नवजात शिशु के छठी से लेकर नाल छेदन जैसी कई रीति-रिवाज के दौरान पीतल के बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है।
पूजा-पाठ में वर्जित माने जाते हैं ऐसे बर्तन
पाठ में अक्सर पीतल और तांबे तथा कांसे के बर्तन का प्रयोग किया जाता है लेकिन भूल कर भी हमें एलुमिनियम लोहिया कांच के बर्तन का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
पीतल, कांसे के ना केवल बर्तन ही शुभ माने गए हैं बल्कि इससे बने भगवान की मूर्तियों को भी अत्यंत शुभ माना गया है। पीतल के साथ ही शास्त्रों में सोना, चांदी और तांबा बर्तनों को उत्तम माना गया है।