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Sirmour News: कृषि एवं पशुपालन कार्यों के बारे में एडवाइजरी जारी! किसानों और पशु पालकों को दिए सुझाव

Sirmour News: कृषि एवं पशुपालन कार्यों के बारे में एडवाइजरी जारी! किसानों और पशु पालकों को दिए सुझाव

Sirmour News: कृषि एवं पशुपालन कार्यों के बारे में एडवाइजरी जारी! किसानों और पशु पालकों को दिए सुझाव

Sirmour News: कृषि एवं पशुपालन कार्यों के बारे में एडवाइजरी जारी! किसानों और पशु पालकों को दिए सुझाव

Sirmour News: हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय चौधरी सरवण कुमार ने सितंबर-2025 महीने के पहले पखवाड़े में किये जाने वाले मौसम पूर्वानुमान सम्बन्धित कृषि एवं पशुपालन कार्यों के बारे में एडवाइजरी जारी की है जिसके अनुसार कृषि कार्यों को करने से किसान लाभान्वित हो सकते हैं।

Sirmour News: कृषि एवं पशुपालन कार्यों के बारे में एडवाइजरी जारी! किसानों और पशु पालकों को दिए सुझाव

उन्होंने फसल उत्पादन को लेकर जानकारी देते हुए बताया कि धान में नाइट्रोजन की दूसरी व अन्तिम मात्रा टॉप ड्रेसिंग के रूप में बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था में डालें, अधिक उपज देने वाली उन्नत किस्मों के लिए 30 कि.ग्रा. तथा सुगन्धित किस्मों के लिए 15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन (यूरिया) प्रति हैक्टयर की दर से प्रयोग करें। मक्का की फसल में अधिक वर्षा होने की स्थिति में खेत से जल-भराव की स्थिति में जल-निकास का उचित प्रबंध करें।

सब्जी उत्पादन
प्रदेश के निचले पर्वतीय क्षेत्रों में फूलगोभी की मध्यम किस्में – पालम उपहार, इम्प्रूवड़ जापानीज़ व मेघा की तैयार पौध की रोपाई करें। खेत की अंतिम जुताई एवं रोपाई से पूर्व 250 क्विंटल गोबर खाद के अतिरिक्त 235 किलोग्राम इफको (12:32:16) मिश्रण खाद, 54 किलोग्राम म्यूरेट-ऑफ-पोटाश तथा 105 किलोग्राम यूरिया प्रति हैक्टेयर खेत में डालें।

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निचले पर्वतीय क्षेत्रों में फूलगोभी की पिछेती किस्म – पूसा स्नोवॉल-16, के-1, के.टी.-25, पूसा सुभ्रा तथा संकर किस्म श्वेता, माधुरी, महारानी, लक्की, व्हाईट गोल्ड इत्यादि; बन्दगोभी की किस्म – प्राईड आफ इण्डिया, गोल्डन एकड़, पूसा मुक्ता तथा संकर वरूण, बहार इत्यादि, गांठ गोभी की किस्म- ब्हाईट वियाना, पालम टैण्डरनॉब, परपल वियना; ब्रॉकली की किस्म – पालम समृधि, पालम हरीतिका, पालम कंचन व पालम विचित्रा तथा चाईनीज बन्दगोभी की किस्म-पालमपुर ग्रीन की पौध की बिजाई कर सकते हैं।

पौध उगाने के लिए तीन मीटर लम्बी, एक मीटर चौड़ी तथा 10-15 सैं.मी. उँची क्यारी में 25-30 किलो ग्राम गोबर खाद, 200 ग्राम इफको (12:32:16), 20-25 ग्राम फफूंदनाशक इण्डोफिल एम 45 तथा 10-15 ग्राम कीटनाशक जैसे थीमेट या फोलीडॉल धूल 5 सैं.मी. मिट्टी की उपरी सतह में मिलाने के उपरान्त 5 सैं.मी. पंक्तियों की दूरी पर बीज की पतली लाइन में बिजाई करें। इन्ही क्षेत्रों में पालक की किस्म- पूसा हरित, पूसा भारती; मेथी की किस्म- आई.सी.-74, पालम सौम्या, पूसा कसूरी इत्यादि की बिजाई पंक्तियों में 25-30 सैं.मी. की दूरी पर करें।

बिजाई के समय 100 क्विंटल गोबर खाद के अतिरिक्त 150 किलोग्राम (12:32:16) मिश्रण खाद तथा 15 किलोग्राम म्यूरेट-आफॅ-पोटाश प्रति हैक्टेयर खेतों में डालें। मध्यवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों में मटर की अगेती किस्म- पालम त्रिलोकी, अरकल, वी.एल.-7 तथा मटर अगेता की बिजाई 30 एवं 7.5 सै.मी. की दूरी पर करें। बिजाई के समय 200 क्विंटल गोबर की सड़ी-गली खाद के अतिरिक्त 185 किलोग्राम इफको (12:32:16) मिश्रण खाद तथा 50 किलोग्राम म्यूरेट-आफॅ-पोटाश प्रति हैक्टेयर खेत में डालें। इन्हीं क्षेत्रों में फूलगोभी की पिछेती किस्म; बन्दगोभी, गाँठ गोभी, मूली, शलगम, गाजर, पालक, मेथी की बिजाई का भी उचित समय चल रहा है।

फसल संरक्षण:
धान की फसल में पत्ता-लपेट कीट के नियन्त्रण के लिए कीटग्रस्त पत्तों को काट दें तथा खेत व मेढ़ों से घास निकाल दें। इस कीट का अधिक प्रकोप होने पर क्लोरपाईरीफॉस 20 ई.सी.- 2.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। धान में तना छेदक कीट के आक्रमण की स्थिति में सफेद बालियां बनती है। 5 प्रतिशत से अधिक नुकसान होने पर लेम्डा साईहेलोथ्रिन 0.8 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

धान में हिस्पा कीट नियन्त्रण के लिए क्लोरपाईरीफॉस 20 ई.सी.- 2.5 मि.ली. /लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें। बैंगन में तना एवं फल छेदक तथा करेला में हड्डा बीटल के नियंत्रण के लिए एवं पत्ते खाने वाली विभिन्न प्रकार की सुण्डियों का प्रकोप होने पर साइपरमैथ्रिन 10 ई.सी. – 1.5 मि.ली./लीटर या इमामेक्टिन बेंजोएट 0.4 मि.ली./ली. का छिड़काव करें।

पशुधन:
सितंबर माह में अपेक्षाकृत बरसात कम होने तथा हल्की ठंड का आगमन होने से कीटों और परजीवियों की सक्रियता में कमी आने लगती है। परन्तु मैदानी क्षेत्रों में कई प्रकार के कीटों और परजीवियों की सक्रियता अनुकूल वातावरण के कारण बनी रहती है इसलिए पशुधन को काटने वाले कीट की रोकथाम के लिए विशेष ध्यान दें। बरसात के मौसम में पशुओं में तनाव के कारण कई प्रकार के दुष्प्रभाव पड़ते हैं तथा इस स्थिति में कुछ घातक संक्रामक रोग पनप सकते हैं।

इन बीमारियों में खुरपका मुंहपका, लम्पी चर्म रोग, गलघोटू, लंगड़ा बुखार और 3-दिन वाला बुखार प्रमुख हैं। जानवरों में बिमारी के किसी भी लक्षण जैसे भूख न लगना या कम होना, तेज बुखार या फिर पेशाब के साथ खून आने की स्थिति में तुरंत पशु चिकित्सक की सलाह लीजिए। इस महीने में भेड़ का ऊन कतरने का कार्य भी करना चाहिए तथा परजीवी रोगों की रोकथाम के लिए पशुओं के गोबर की जांच पशु चिकित्सालय में करवा लें और रोगों की पहचान हो जाने पर पशु चिकित्सक से उपचार करवाएं।

पशु के लिए हरे चारे के लिए बरसीम की पहली बिजाई सितंबर माह के अंतिम सप्ताह में शुरू करें। बरसीम की पहली कटाई से अधिक चारा लेने के लिए सरसों या जई मिलाकर बिजाई करें। हरे चारे से साइलेज बनाए, हरे चारे के साथ सूखे चारे को मिलाकर पशु को खिलाएं। किसान एवं पशु पालक अपने क्षेत्रों की भौगोलिक तथा पर्यावरण परिस्थितियों के अनुसार अधिक एवं अतिविशिष्ट जानकारी हेतु नजदीक के कृषि विज्ञान केन्द्र एवं कृषि अधिकारी से सम्पर्क बनाए रखें। अधिक जानकारी के लिए कृषि तकनीकी सूचना केन्द्र एटिक 01894-230395/1800-180-1551 से भी सम्पर्क कर सकते हैं।

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Written by News Ghat

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