क्या स्थानीय लोगों व सरकार के लिए घाटे का सौदा साबित होगा 7000 का रेणुकाजी बांध
हिमाचल को महज 40 मेगावाट बिजली मिलेगी, तो दिल्ली पीएगी बरसात का पानी
विशेष.….
मात्र 1800 करोड़ से बन रही है 210 मेगावाट की लुहारी-1 विद्युत परियोजना
26 किलोमीटर लंबे बांध से 7 किलोमीटर बढ़ेगी संगड़ाह-नाहन मार्ग की दूरी
गर्मी व सर्दियों में नदी का डिस्चार्ज मात्र 5 क्युमेक्स होने से दिल्ली को कैसे मिलेगा 23 क्यूमेक्स ताजा पानी
बरसात में रिजर्वायर मे स्टोर 498 मिलियन क्युविक मीटर बासा व गंदला पानी जाएगा दिल्ली
संगड़ाह। भारत के प्रधानमंत्री द्वारा मंडी से किए गए 11,000 करोड़ से अधिक की विद्युत परियोजनाओं के उद्घाटन व शिलान्यास मे बेशक करीब 7,000 करोड़ की रेणुकाजी बांध परियोजना सबसे बड़े बजट वाली योजना रही, मगर यह प्रोजेक्ट क्षेत्रवासियों तथा सरकार के लिए घाटे का सौदा साबित होगी।
पीएम द्वारा मात्र 40 मेगावाट के इस डेम के साथ सोमवार 210 मेगावाट की जिस लोहरी-1 विद्युत परियोजना का शिलान्यास किया गया, उस पर महज 1,800 करोड खर्च होंगे।
बांध से विस्थापित होने वाले 1142 के करीब किसान परिवारों को हालांकि सरकार अथवा ऊर्जा निगम द्वारा करीब 447 करोड़ का मुआवजा जारी किया जा चुका है, मगर 26 किलोमीटर लंबे इस डेम से उपमंडल मुख्यालय संगड़ाह तथा चौपाल की 5 दर्जन के करीब पंचायतें भी प्रभावित होगी और इनकी दूरी जिला मुख्यालय नाहन व चंडीगढ़ आदि से दूरी 7 किलोमीटर बढ़ जाएगी।
इतना ही नहीं बाधं से डूबने 2,100 हेक्टेयर भूभाग में मौजूद रहने वाले बंदर, सुअर, लंगूर चूहे, हिरण व खरगोश आदि जंगली जानवर साथ लगते इलाके का रुख करेंगे और किसानों की फसलों को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
जानकारों की माने तो डेम बनने पर इस पहाड़ी इलाके मे भूस्खलन की घटनाएं व सर्दियों मे धुंध भी हो सकती है, हालांकि इस बारे कोई वैज्ञानिक शोध होना शेष है। पिछले 14 साल से हालांकि विस्थापित होने वाले किसानों द्वारा गठित संघर्ष समिति अपनी मागों को मनवाने के लिए बार बार प्रदर्शन कर रही है, मगर भोले भाले आम लोग अब तक बांध के सामाजिक व पारिस्थितिक प्रभाव से अनिभिग्य है और काफी लोग राजधानी को पानी पिलाने, पर्यटन विकास व रोजगार मिलने की बात से उत्साहित भी है।
इस डैम से हालांकि दिल्ली सहित छह राज्यों को एमओयू के मुताबिक 23 क्यूमेक्स पानी दिया जाना है, मगर सर्दी व गर्मियों में गिरी नदी में मात्र 5 क्यूमेक्स अथवा क्युविक मीटर प्रति सैकेंट पानी ही रहता है। ऐसे में परियोजना के अभियंता बरसात में नदी में आने वाली बाढ़ का पानी पूरी सर्दियों और गर्मियों के दौरान दिल्ली व अन्य ने राज्यों को भेजने की बात कह रहे हैं।
जानकारी के अनुसार इस जलाशय मे 498 मिलियन क्युविक मीटर पानी स्टोर होगी। ऐसे में इस बांध से भेजे जाने वाले पेयजल की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं, क्योंकि बरसात में नदी में मिट्टी अथवा सिल्ट वाला पानी आता है ओर कई माह तक दिल्ली वाले इसे फिल्टर अथवा शुद्धीकरण कर ही पी सकेंगे।
डीपीआर के मुताबिक परियोजना से दिल्ली की जरूरत का 40 फीसदी पानी उपलब्ध होगा। इतना ही नहीं बरसात समाप्त होने पर रिजर्वायर को धीरे-धीरे खाली किए जाने की सूरत में पानी का दबाव कम होगा और लगातार 40 मेगावाट बिजली उत्पादन भी नहीं हो पाएगा।
परियोजना कार्यालय मे शिलान्यास के दौरान मौजूद भाजपा नेता सुनील शर्मा, रूप सिंह, प्रताप तोमर, रामेश्वर शर्मा व प्रताप सिंह आदि के अनुसार दशकों से लंबित रेणुकाजी बांध के लिए बजट उपलब्ध करवाने के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अथवा केंद्र सरकार ने 8 किलोमीटर नौहराधार-चूड़धार रोपवे निर्माण के लिए 250 करोड़ की सौगात भी क्षेत्रवासियों को दी और आज तक इलाके मे इतने बड़े बजट की कोई भी योजना नही बनी।
उन्होने कहा कि, रेणुकाजी बांध से सैंकड़ो लोगों को रोजगार मिलने के साथ-साथ इस पिछड़े क्षेत्र का पर्यटन विकास भी होगा। भाजपाइयों व बांध प्रबंधन के अधिकारिओं के अनुसार परियोजना निर्माण शुरू होने से पहले ही संगड़ाह-रेणुकाजी-नाहन मार्ग के निर्माण के साथ-साथ विस्थापितों की सभी जायज मांगे भी पूरी की जाएगी।
1960 के दशक से चर्चिच रेणुकाजी बांध के शिलान्यास से एक तरफ जहां क्षेत्रवासियों मे काफी उत्साह है, वही साईड इफेक्ट की चिंता भी है। विडंबना यह भी है कि, गिरी नदी के साथ लगते उपमंडल संगड़ाह, पच्छाद, नाहन व पांवटा के दर्जनों गांवों मे आज भी पेयजल संकट है और पानी दिल्ली भेज कर “घर मे नही दाने, अम्मा चली भुनाने” की कहावत भी क्षेत्र मे चर्चा में है।
राजनीतिक इच्छाशक्ति व बजट के अभाव मे 1960 के दशक सिरे न चढ़ सकी रेणुकाजी बांध परियोजना का 1993 मे इन्वेस्टिगेशन कार्य शुरू होने के बाद से हर विधानसभा व लोकसभा चुनाव मे यह मांग मुख्य मुद्दा रहती थी।
रेणुकाजी बांध परियोजना के महाप्रबंधक इंजीनियर रूपलाल के अनुसार 40 मेगावाट की इस परियोजना से देश की राजधानी दिल्ली सहित आधा दर्जन राज्यों को एमओयू के अनुसार पानी की सप्लाई होंगी। निर्माण राशि का 90% हिस्सा केंद्र सरकार जबकि 10 प्रतिशत 6 राज्य वहन करेंगे।
जीएम के अनुसार गर्मियों व सर्दी मे बेशक नदी मे पानी काफी कम है, मगर बरसात में आने वाला पानी इकट्ठा कर कईं दिन सप्लाई किया जा सकेगा। गिरि नदी के पूरे साल के डिस्चार्ज के आधार पर ही विशेषज्ञों ने रिपोर्ट तैयार की और बांध बनने पर कुछ हद तक स्थाई डिस्चार्ज भी बढ़ जाएगा।
गौरतलब है कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सोमवार हिमाचल प्रदेश को 11,000 करोड़ रुपए की सौगात दी। रोचक तथ्य यह भी है कि, बांध का वास्तविक निर्माण कार्य शुरू होने से पहले ही इस प्रोजेक्ट पर अब तक करीब 780 करोड़ खर्च भी हो चुके हैं।